कविता

तय है

तय है शाम का आना
तय है फिर
उदासी में डूब जाना
बुहार के रखते हैं
तेरी यादों की ज़मीं
तय है किसी गुस्ताख़
हवा का फिर से धूल
उड़ा जाना।
एहसास खत्म करके
सोचा सुकून से रह लें
मेरे भरम को
तोड़ने के लिए फिर,
तय है तेरे किसी हमशक्ल का
मेरे सामने आ जाना।
सपने दिखाकर करना वादा
उसपार ले जाने का
हाथ थाम कर
मंज़िल तक पहुंचाने का
कोई जब बेहतर
मिल जाए हमसे
तय है तेरा बीच मझधार में
मेरा हाथ छोड़ जाना।

सविता दास सवि

पता- लाचित चौक सेन्ट्रल जेल के पास डाक-तेजपुर जिला- शोणितपुर असम 784001 मोबाईल 9435631938 शैक्षिक योग्यता- बी.ए (दर्शनशास्त्र) एम.ए (हिंदी) डी. एल.एड कार्य- सरकारी विद्यालय में अध्यापिका। लेखन विधा- कविता, आलेख, लघुकथा, कहानी,हाइकू इत्यादि।