कलयुग और रामायण
सतयुग की हम बात सुनावे
राजा दशरथ के पुत्र यहां है ॥
राम जिसका है नाम प्रतापी
गाये सब मुनिवर उनकी वाणी॥
कलयुग में जो खेल रचा है
हर मनुष्य सबसे जुदा है॥
स्वार्थ से यहां इंसान बना है
पीड़ा के दुख में उलझा है॥
राम करे पिता की सेवा
माता सीता भी निभाए धर्म॥
सारी प्रजा है उनको भाती
उनसे बड़ा है कौन प्रतापी॥
कलयुग में है कौन सहाई
माता-पिता को आश्रम छोड़ आई॥
सेवा दान है दिखावे का मेला
और पूरे जग में है वह अकेला॥
रघुकुल रीति सदा चली आई
वचन पूर्ति करें दोनों भाई॥
दुख को अपनी झोली में डाले
14 वर्षा वनवास पधारे॥
यहां मनुष्य नहीं है आज्ञाकारी
उनको होवे अनेक बीमारी॥
मोबाइल में है रिश्ते बनते
जिनसे ना पहचान हमारी॥
रघुकुल वंशी कष्ट उठा वे
नदी ,नगर, वन पार कर जावे॥
सीता मैया जो है नारायणी
छल से ले गयो लंका को स्वामी॥
कलयुग की है बात अनोखी
अपहरण जब करें द्रोही ॥
बलात्कार कर कन्या को
प्राण हर फिर जग में छोड़ी॥
लंका का भी भेद बड़ा है
अशोक वाटिका में सीता को रखा है ॥
रावण जो अत्यंत बलशाली
सीता से ना की मनमानी॥
यहां दुनिया भी इंसाफ तो मांगे
रास्तों पर वह दीप जलावे॥
यह पापी तो गर्व से खड़ा है
लड़ने हेतु वकील भी यहां है॥
हनुमान भी बड़ा आज्ञाकारी
जला दी उसने लंका सारी॥
अहंकार तोड़ रावण का
लंका में तहत मचा दी मचा दी॥
यहां मां का मन विचलित बड़ा है
बेटी को जिसने हरा है॥
न्याय मांगी वह बेचारी
ना ही अपनी हिम्मत हारी॥
राम जी भी यहां दुख से भारी
लावे वानर सेना सारी॥
समुद्र पर सेतु को बांधे
लंका जाने मार्ग बनावे॥
सत्य से प्रयास करती
रोज करे वो कार्रवाई ॥
पापी को सूली पर चढ़ा कर
आज चैन की सांस है ले पाई॥
लंका पर विजय वो पावे
धर्म की सदा ही जय कहलावे॥
सीता को ले संग रघुनाई
गए अयोध्या दोनों भाई॥
अब करें अंतर दोनों जग में
रावण ले जन्म दोनों युग में॥
पर कलयुग में जो है विनाशी
उजड़ कर दी दुनिया सारी॥
यहां आज ना विश्वास बचा है
अधर्म के पथ पर मनुष्य बड़ा है ॥
तो कैसे हम सुख भोग पावे
कहे लीलाधर हमारे॥
जय श्री राम
— रमिला राजपुरोहित