ग़ज़ल
सैलाब कोई आंखों के पानी में आएगा ।
जब मेरा ज़िक्र उसकी कहानी में आएगा ।।
यूँ रोकिए न धार मुहब्बत की है नदी ।
दरिया को लुत्फ़ उसकी रवानी में आएगा ।।
ऊला को पढ़ के ख़ुद को तसल्ली न दीजिये ।
हर दर्द मेरे शेर के सानी में आएगा ।।
सँभलेगा कैसे दिल तेरा कमसिन के हाथ में ।
उसको तो ये शऊर जवानी में आएगा ।।
इज़हारे इश्क़ हो गया उनको ख़बर न थी ।
ग़म का भी कोई बोझ निशानी में आएगा ।।
ये हुस्न ढल सकेगा नहीं इस जहान में ।
यह भी गुमान वक्त पे फ़ानी में आएगा ।।
उतना ही दिल की बात बयाँ कर सकूँगा मैं ।
जितना नशा शराब पुरानी में आएगा ।।
फ़ानी – नश्वर या नाशवान वस्तु
— नवीन मणि त्रिपाठी