गीतिका/ग़ज़ल

दास्तान रूहानी लिखता हूँ

शब्दों में दास्तान रूहानी लिखता हूँ
दर्द में मोहब्बत की निशानी लिखता हूँ
हसरतें सभी के दिल में कुछ बदलने की
गुजर चुकी वो सब नादानी लिखता हूँ
जब कभी भी करते मनमानी किरदार
कशमकश में उलझी कहानी लिखता हूँ
संजो रखा है सबने अपने ख्वाबों का कोश
रंग बिरंगी सबकी जिंदगानी लिखता हूँ
कबूल जो जाता है जब समर्पण मेरा
उतरी फलक से वो मेहरबानी लिखता हूँ
यादों की जज़्बातों की जब भी गागर टूटे
नमक मिला वो आंखों का पानी लिखता हूँ
मणि हसीन बहुत हैं हर शहर फंतासी का
अपनी मिट्टी से जुड़ी निशानी लिखता हूँ
— मनीष मिश्रा मणि