कविता

रिश्ते

ये रिश्ते भी दिखावा है
प्यार प्यार में नफरत भरा
है विश्वास किसपर धरा
जितने लोग उतनी बातें।

मूंह मिट्ठू बन गए है लोग
है जलन बहुत ही जोर
किसके गला दबा के काटे
किसके दिल में ठेस लगाए।

नहीं किसी को डर प्रभु से
घंटी माला फेर रहे है
प्रभु का गुण गा रहे है
फिर भी गला काट रहे है।

इनकी जरा नादानी देखो
जो भला करे उसकी बुराई
पीठ पीछे सैकड़ों गाली
जैसे वाण चलाए तीर ।

भगवान भी अंधे नहीं है
जो देख नहीं सकते
भगवान भी बहरे नहीं है
जो सुन नहीं सकते।

अरे वो तो दुनिया के मालिक
सबकी सुनते सबको देखते
परिणाम सामने आता है
फिर भी इंसान समझता नहीं।

— विजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।