कविता

कबीर

होश जब से सम्भाला ,सम्भलते गये
आग की दरिया से निकलते गये
फेंकने वाले ने फेंक दिया किचड़ में
कवल बन के निकले और खिलते गये
जात धर्म के लड़ाई में एक बीर भी था
कहते हैं बिते ज़माने में एक कबीर भी था
सताया दबाया किसी को नहीं
चेताया जगाया निकलते गये
होश………आग………..
सिखाना चाहा प्रेम की भाषा
लोग ठहरे कर गये परिभाषा
जलाया ज्ञान का मशाल
लोग बदले कि बदलते गये
लोग खड़े थे उनके विरोध में
आखिर क्या कह दिया उसने
जो लगे हैं लोग शोध में
कारवां बनाया कि लोग मिलते गये
होश जब से………
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई
लोग रटते है भाई भाई
न जाने क्यों लोग फिसल कर गिरते हैं
क्या इन रिस्तो पे जमी है काई
आधा सच ,झूठा सच को सच में बदल दिया
जलाया ज्ञान का …..लोग बदले कि …..होश जब से……
अपना दर्द पराया दर्द सब एक हैं
खुद से प्यार करना सिख लो रिस्ते     तो अनेक हैं
मिठी वाणी बोलने में खर्च लगता है क्या ?
समझाया कि लोग समझते गये
गुरू मिल गये रामानंद
हो गये कबीर आनंद
चलाया कबीर पंथ
लोग जुड़े कि जुड़ते गये
होश जब से सम्भाला सम्भलते
आग कि दरिया से निकलते गये
फेंकने वाले ने फेंक दिया किचड़ में
कवल बन के निकले और खिलते गये

चन्द्र प्रकाश गौतम

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय छात्र मीरजापुर उत्तर प्रदेश पिन कोड 231306 मोबाइल नंबर 8400220742