दोहा
“दोहा”
पूण्य मास सावन सखी, देता बहुत सकून।
देखो अपने बाग में, हिल-मिल खिले प्रसून।।-1
झूलूँ झूला सजन सह, कजरी गाएँ लोग।
ढ़ोल मजीरा हाथ में, कथा श्रवण मनभोग।।-2
कदम डाल मिलती कहाँ, कहाँ खिले मधुमास।
पवन बतकही में मगन, ऋतु करती आभास।।-3
धन्य शिवाला धाम में, फूलों की भरमार।
दूध पूत अविरत बहे, पर मनसा बीमार।।-4
कुछ भी हो पर धन्य हैं, सावन के त्यौहार।
नाग देवता पी रहे, गोरस भरि-भरि थार।।-5
मेघ मिलन को व्यग्र हैं, नदियाँ करती शोर।
भाद्र महीना में कहाँ, नाचें मैना मोर।।-6
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी