मुक्तक/दोहा

दोहा

“दोहा”

पूण्य मास सावन सखी, देता बहुत सकून।
देखो अपने बाग में, हिल-मिल खिले प्रसून।।-1

झूलूँ झूला सजन सह, कजरी गाएँ लोग।
ढ़ोल मजीरा हाथ में, कथा श्रवण मनभोग।।-2

कदम डाल मिलती कहाँ, कहाँ खिले मधुमास।
पवन बतकही में मगन, ऋतु करती आभास।।-3

धन्य शिवाला धाम में, फूलों की भरमार।
दूध पूत अविरत बहे, पर मनसा बीमार।।-4

कुछ भी हो पर धन्य हैं, सावन के त्यौहार।
नाग देवता पी रहे, गोरस भरि-भरि थार।।-5

मेघ मिलन को व्यग्र हैं, नदियाँ करती शोर।
भाद्र महीना में कहाँ, नाचें मैना मोर।।-6

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ