नमक की आपूर्त्ति
नमक की आपूर्त्ति नहीं हो पा रही थी । साप्ताहिक हाट लगने बन्द हो गए थे । मेरे पिताजी के वेतन बन्द हो गए थे, घर की हालत निरीह ‘बकरी’ जैसी थी ! …. भय, भूख, कोख ….सब खाली ! कांग्रेस का यह काला चेहरा ! गोरी प्रियदर्शिनी की कलंकिनी रूप ! प्रथम महिला प्रधानमंत्री की ऐसी भयावह रूप ! ‘1971’ में बनी लौह महिला की छवि ने सब खत्म कर दी …. विरोधियों को जेल, कोई बेल नहीं ! मैंने प्रथम महिला राष्ट्रपति को देखा है, जो रिटायर्ड के बाद सभी गिफ़्ट ‘मुम्बई’ लेकर चली गई ! देश की जनता ने कांग्रेस और इंदिरा नेहरू गांधी को हराया, किन्तु नादान जनता का दिल 2 साल इंदिरा-बिछोह सह नहीं पाए और फिर इतना होने के बाद भी उन्हें पुनः प्रधानमंत्री बना दिए। मैं सिर्फ प्रजा नहीं, देश की सत्ता पर किसी एक परिवार या किसी एक जाति या धर्म का अधिकार नहीं, मेरा भी है….. अंतिम पंक्ति में खड़ा एक गरीब कुम्हार भी प्रधानमंत्री बनना चाहता है! पार्टियों में लोकतंत्र गायब है, परिवारवाद हावी है । एक ही व्यक्ति बीस-बीस सालों से पार्टी सुप्रीमों बने हुए हैं, वे पद छोड़ते भी हैं, तो अपनी ही संतान को देते हैं !
यह सब बातें दादाजी के बाद पिताजी सुनाए ! वैसे इंदिरा जी से आमने-सामने भाषण मैंने भी सुना है…..