मुक्तक
“मुक्तक”
राखी में इसबार प्रिय, नहीं गलेगी दाल।
जाऊँगी मयके सजन, लेकर राखी लाल।
बना रखी हूँ राखियाँ, वीरों से है प्यार-
चाल चीन की पातकी, फुला रहा है गाल।।
सीमा पर भाई खड़े, घर में मातर धाम।
वर्षा ऋतु राखी लिए, बुला रही ले नाम।
भैया अपने हाथ से, बाँध रही हूँ स्नेह-
क्या कर लेगा चाइना, कर दो काम तमाम।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी