सांप
सेठ जमा गोरी की बात क्या है
उनको क्या मालुम
बरसात की रात क्या है
न सोने दें न रोने दे
रात भर सताया है
टिप टिप टपकते बूदों ने
रात भर जगाया है
हाल -ए -दिल सीपी गा रहा है
कोई हड्डी गला रहा है
कोई चर्बी गला रहा है
कोई उपवास रखता है
वजन कम करने के लिए
कोई भूखों मर रहा है
ठिठुर ठिठुर कर बिताते हैं
जाड़े की रात
दिन में काम भी करते हैं
बड़ी बड़ी बिल्डिंग के बाहर
वहीं क्यों सोते हैं
सुविधाओं से वंचित
वहीं क्यों रहते हैं उनका हक मारने वाला कौन है
सबका साथ सबका विकास
नारा देने वाला कौन है ?
करोड़ों खर्च होते हैं
गरिबों के नाम पर
अब तो उनका बिकास बता रहा है
कोई हड्डी गला रहा है……………
उनकी योजनाएं
उनके बातों में है
सरकारी सुविधाएं
प्राइवेट हाथों में है
महाजनी व्यवस्था आज भी
उनको सता रहे हैं
लोकतंत्र की दौर में
उनको दबा रहे हैं
आगे जाने से रोकना
उनकी रणनीति है
प्रेम दिखाना तो
उनकी राजनीति है
महसूस हुआ तो कह देता हुं
सांप को दूध पिलाना
खतरे से बाहर नहीं है