अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ
पद्मविभूषण और ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित अमृता प्रीतम मूलतः पंजाबी भाषा की कवयित्री व लेखिका थी । पंजाब के गुजराँवाला में 31 अगस्त 1919 को जन्मी अमृता जी ने सौ से अधिक पुस्तकें लिखी, जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ भी शामिल है। उनकी बाल्यावस्था लाहौर में बीती।
कमोवेश शिक्षा भी वहीं पाई । अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं, जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। ….तो हिंदी की लेखिका कृष्णा सोबती की रचना ‘ज़िंदगीनामा’ से प्रेरित अमृता प्रीतम की पुस्तक का शीर्षक भी यही रहने से 40 सालों तक भारतीय न्यायालय में मुकद्दमे भी चला !
1957 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1958 में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत, 1982 में भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। उन्होंने अपनी पंजाबी कविता ‘अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ’ के लिए बहुत प्रसिद्धि पाई।
इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दु:खद वर्णन है और यह कविता और पाकिस्तान दोनों देशों में सराही गयी। अपने से कम उम्र के इमरोज़, जो चित्रकार थे, उनसे अमृता जी के प्रेम-संबंध थे व दोनों लिव इन में थे, वैसे अमृता जी के पहले पति सरदार प्रीतम सिंह थे, जिनका देहावसान हो गया था।