गई कहाँ चौपाल
अपने प्यारे गाँव से, बस है यही सवाल !
बूढा पीपल हैं कहाँ, गई कहाँ चौपाल !!
रही नहीं चौपाल में, पहले जैसी बात !
नस्लें शहरी हो गई, बदल गई देहात !!
जब से आई गाँव में, ये शहरी सौगात !
मेड़ करें ना खेत से, आपस में अब बात !!
चिठ्ठी लाई गाँव से, जब यादों के फूल !
अपनेपन में खो गया, शहर गया मैं भूल !!
शहरी होती जिंदगी, बदल रहा हैं गाँव !
धरती बंजर हो गई, टिके मशीनी पाँव !!
गलियां सभी उदास हैं, सब पनघट हैं मौन !
शहर गए गाँव को, वापस लाये कौन !!
चिठ्ठी लाई गाँव से, जब यादों के फूल !
अपनेपन में खो गया, शहर गया मैं भूल !!
बदल गया तकरार में, अपनेपन का गाँव !
उलझ रहें हर आंगना, फूट-कलह के पाँव !!
पत्थर होता गाँव अब, हर पल करे पुकार !
लौटा दो फिर से मुझे, खपरैला आकार !!
खत आया जब गाँव से, ले माँ का सन्देश !
पढ़कर आंखें भर गई, बदल गया वो देश !!
लौटा बरसों बाद मैं, बचपन के उस गाँव !
नहीं रही थी अब जहाँ, बूढी पीपल छाँव !!
— सत्यवान सौरभ