बेटे, बेटी या कहूँ ‘संतान’ !
बहनों एवं भाइयों ! आप ही बताइए, अगर हम बेटे-बेटी को एकसमान समझते हैं, तो हम इसे अलग न मान इनके लिए सिर्फ ‘संतान’ शब्द का ही उपयोग क्यों नहीं करते हैं ? इससे हमारे विचार स्वस्थ, स्पर्द्धायुक्त और उन्नतशीलता लिए हमेशा तरोताज़ा रहेगी!
मेरे इस विचार पर मेरे एक मित्र ने टिप्पणी किया- बेटी को हम संतान क्यों कहें ? हम बेटी को बेटी क्यों नहीं कहें ? कभी कहेंगे, माँ-बहन के लिए ‘शब्द’ डालिए ! शब्द बदलना मानसिक दिवालियेपन का प्रतीक है । शब्द नहीं, सोच बदलिए !
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जहाँ तक माँ और बहन जैसे- शब्द की बात है, तो अभीतक माँ और बहन खुद आदर्शतम शब्द है, किन्तु बेटी कहने में अब भी कई लोग संकोच करते हैं, नहीं तो ऐसे लोग उन्हें ‘बेटा’ क्यों कहते ? संतान कहा जाने में कोई पकड़ नहीं आएगी कि हम बेटा का जिक्र कर रहे हैं या बेटी की !
साहब, हमारी सोच इतनी मानसिक और सामाजिक रूप से इतनी संकोचित, संकीर्ण और दिवालियेपन की शिकार हो गई है कि चाहकर भी अपनी ‘सोच’ बदल नहीं पा रहे हैं, इसलिए ‘शब्द’ बदल रहै हैं!
मर्ज़ी आपकी, लेकिन मेरा मिशन जारी रहेगा !