भारतीय खिलौने
मिट्टी के खिलौने-सकोरे की पुनरावृत्ति का समय है यह ! ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चाइनीज खिलौने व पुतलों पर अप्रत्यक्ष तरीके से रोक लगाते हुए स्वदेशी खिलौने बनाने पर जोर दिए हैं । फिर तो कुम्हारगिरी से तैयार मिट्टी के खिलौने, सकोरे, बत्तखें, मोर, वकील, ढोलकिया, गुड़िया, डांसर इत्यादि की भी मार्केटिंग हो, क्योंकि यह कला तो भारत की देन है।
भारत में काठ व लकड़ी से तैयार पुतले यानी कठपुतली कला भी सदियों से यहाँ की ही देन है । छत्तीसगढ़ में यह खासे प्रचलन में था, तब पूरे देश में रामलीलाएँ भी कठपुतली कला लिए होती थी। महाभारत सहित कई लोकगाथाएँ भी यथा- शीत-बसंत, आल्हा-ऊदल, राजा सलहेस, घुघली-घटमा, बाला लखींद्र इत्यादि गाथाएँ भी कठपुतली कला के अंतर्गत कुछ दशक पीछे तक दिखाए गए !
मिट्टी के खिलौने या अन्य वस्तुओं से तैयार स्वदेशी खिलौने से बेरोजगारी भी दूर होगी। विकिपीडिया के अनुसार, खिलौना ऐसी किसी भी वस्तु को कहा जा सकता है, जिससे खेलकर आनंद प्राप्त हो। खिलौनों को अक्सर बच्चों से सम्बंधित समझा जाता है, लेकिन बड़े लोग भी इनका प्रयोग करते हैं। भारत में खिलौनों का प्रयोग अति-प्राचीन है और सिंधु घाटी सभ्यता के खंडहरों से भी यह प्राप्त हुए हैं।
पकी मिट्टी के खिलौने टिकाऊ होते हैं, जमीन के अंदर भी धँस कर कई हजार वर्ष के बाद भी ज्यों के त्यों निकलते हैं, किन्तु इनमें टूटने-फूटने का डर लगा रहता है । लकड़ी और बाँस से तैयार खिलौने भी सुंदर होते हैं, किन्तु उनमें पानी पड़ने से या आग लगने से उनकी क्षति हो जाती है । वहीं प्लास्टिक के खिलौने हल्के होते हैं और टिकाऊ भी पानी, मिट्टी, हवा के संपर्क से भी सड़ती-गलती नहीं हैं !