जबरिया उगाही
जबरिया दुःख होता है, जब हमारे शिक्षकों के स्ट्रीट-नेता ‘सुप्रीम कोर्ट’ में नियोजित शिक्षकों के सम्मानजनक लड़ाई के बहाने चंदे की विस्तृत उगाही करते हैं और पटना व बागडोगरा से सीधे दिल्ली ‘हवाई जहाज’ से उड़ जाते हैं, जबकि जिले और गली के नुक्कड़ शिक्षक-नेताओं का वहाँ जाना कोई जरूरी नहीं है । सभी शिक्षक संघों के चीफ़ व महासचिव व विशिष्ट प्रतिनिधि वहाँ तो है ही ! वैसे भी किसी के यूँ सुप्रीम कोर्ट के परिसर में ही प्रवेश करना निषेध है, जो जाएंगे, उनके लिए ‘पास’ होती है। हमारी शिक्षिका बहनों द्वारा जब शिक्षक-संघों के बैंक खाता नम्बर माँगे जाते हैं कि कैशलेस व्यवस्था के तहत चंदे के लिए संघ के खाता में रुपये जमा कर देंगे ! ….तो छद्म शिक्षक-प्रतिनिधि ऐसा नहीं करते हैं और कहते हैं- नकद नहीं देना है, तो मत दीजिये, किन्तु यह मत कहिये संघ फर्जी है ! विदित हो, ऐसे संघों के कोई रजिस्ट्रेशन नं. नहीं होते हैं । कुकुरमुत्ते की भाँति उगे ऐसे शिक्षक संघ और उनके ‘बिचौलिये’ शिक्षक इस फिराक में रहते हैं कि ‘यही मौका है, मत चूको चौहान !’
इसके विरुद्ध एक आदर्श शिक्षक रमण जी बड़े खिन्न मन से ऐसे संगठन से अलग हो गए !