माहवारी को सहज बनाओ
अगर तेरह चौदह साल की बच्ची को माहवारी शुरू होने से पहले ही सारी समझ दी जाएं तो अचानक से बच्ची के पिरीयड शुरू हो जाने पर घबराएंगी नहीं। माहवारी क्यूँ होती है, कैसे होती है क्या-क्या एहतियात बरतना चाहिए सारी समझ बेटी को देनी चाहिए।
माहवारी कहते है जिसे हम ये अभिशाप नहीं वरदान है। निषेध नहीं, वर्जित नही इंसान के पैदा होने की प्रक्रिया का सबसे बड़ा प्रमाण है। जो दिया है उपर वाले ने हर सिर्फ़ स्त्री को ये अनमोल सा उपहार है। आज भी कई घरों में माहवारी के समय छूत-अछूत जैसा व्यवहार होता है। माहवारी के समय मंदिर जाने से मत रोको बेटीयों को बेटियाँ खुद उमा, दुर्गा का रुप है।
जिस रक्त से लथबथ नहाये हो माँ की कोख में खेले हो ये वही रक्त है। डरो नहीं, दूसरा कोई द्वार नहीं जहाँ से ये बहता है। वहीं से हर इंसान जन्मे है।प्राकृतिक वैज्ञानिक क्रिया को धर्म-अधर्म से तोलना न्याय नहीं।
कभी अचानक माहवारी शुरू होने पर दाग बच्ची के फ्राक पर लगे हुए दिखें तो मन ही मन कोई हंसों नहीं। ये स्कूल कालेज या किसी जगह पर अचानक होनेवाला हादसा है। उपहास या उलाहनों से उन पर ताने वाने कसकर बेटी को शर्मिंदा मत करो। देखा है इस वजह से हमने पढ़ाई बेटी को छोड़ते हुए, कहीं आने जाने पर डरते हुए। कितनी सरल प्रक्रिया को हमने उलझते उलझन में ढ़ाल दिया है।
इस दर्द को झेलना सहज नहीं होता। बदन बच्ची का टूटता है, पेढु और जाँघ पर करवत चलते बेटी का मन पाँच दिनों तक मचलता है। शर्म और संकोच से सकुचाती हर लड़की को मुखर करने का वक्त आ गया है। तीन दिन बेटी को और स्त्री को हो सके तो आराम दो। ये पाप नहीं पवित्र क्रिया है समाज की अवहेलना का और वेदना का जलता ज़लज़ला है।
संवेदना दिखाओ कुछ दिन आराम से कट जाने दो, घुमने दो सारे घर में बेटी मुक्त गगन की चिड़ीया है। कपड़े हुए पुराने जला दो। सेनेटरी नैपकिन का ज़माना है। थोड़ी सी बचत करके बेटी को इसका उपहार दो, इन दिनों गुप्तांग की स्वच्छता बहुत जरूरी है कपड़े से संक्रमित हो सकता है। माहवारी की इस क्रिया को सरल सहज बन जाने दो माहवारी में छूने से न आचार गंदा होगा ना भगवान ही रुठेगा।
तो इन कष्टदायक पलों को थोड़े हल्के करने में हर बेटी की सहाय करो। ईश के इस उपहार को सहज क्रिया समझ कर हर घर की बेटी को सही तरिका समझा कर ज्ञात करो और ज्ञान दो।
— भावना ठाकर