सामाजिक

हर बार बेटा बहू ही गलत नहीं होते

इस कलयुग में संयुक्त परिवार विभक्त होते छंट रहे है, इस विडम्बना के लिए  किसको दोषी समझा जाए? ज़्यादातर लोग बेटे-बहू को ही उस बात के लिए दोषी ठहराएँगे। लोगों और समाज की बात जाने दें हर कथाकार, प्रवचन कार या बड़े-बड़े भाषण देने वाले प्रबुद्ध प्रवक्ता भी आज की जनरेशन पर ही दोष का […]

सामाजिक

बच्चों को हर सुविधा के साथ जिम्मेदारी भी दीजिए

बच्चों के सारे शौक़ पूरे करना हर माँ-बाप की ख़्वाहिश होती है, खुशी होती है। अपने ख़्वाबों को परे रखकर, अपना पेट काटकर हर माँ-बाप बच्चों को राज कुमार और राज कुमारी की तरह रखना चाहते है। हर सुख सुविधा से सज्ज ज़िंदगी देकर बच्चों को वो ज़िंदगी देना चाहते है जो खुद को नहीं […]

सामाजिक

जिस ओर जवानी चले उस ओर ज़माना चले

बुलंद भारत की तस्वीर में रंग भरने का काम आजकल की युवा पीढ़ी बखूबी कर रही है, जरूरत है उनको हर सुविधा उपलब्ध करवाने की। जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है इस कथन को सार्थक करते युवा शक्ति देश और समाज की उन्नति में अपना भरपूर योगदान दे रही है। मजूर […]

सामाजिक

वाहिका है वामाएँ

“महिला दिवस पर स्त्री विमर्श शोभा नहीं देता, जो पहचान का मोहताज नहीं ऐसे वंदनीय चरित्र की गाथा लिखनी है” एहिक संग्राम में हर किरदार पर भारी नायिका के रेशम से भी रेशमी एहसास है, सीरे को छूकर देखो न कभी.. ऊँगलियों से बहती लालित्य की लाली बाकम्माल है, नखशिख ओज से भरी गुनों की […]

सामाजिक

कोई काम छोटा नहीं होता

आज टीवी पर “मास्टर शेफ़” नाम का शो देखा, तो विचार आया कि सच में हमने बौद्धिक तरक्की कर ली है। खाना पकाना जो काम कल तक लड़कियों का था, आज लड़के भी उस पर हाथ आज़मा रहे है, देशी से लेकर कान्टिनेंटल  डिशें बना रहे है। और दूसरा शो देखा “शार्क टैंक” जिसमें लड़कियाँ […]

सामाजिक

वाकई लड़कियों ने क्या तरक्की की है

“जैसे उब चुका संसार एक समय की लाज शर्म के गहनों से लदी और दहलीज़ के भीतर सलिके से रहती लड़कियों के रहन सहन से, वैसे वापस कब नफ़रत करेगा संसार दिन ब दिन कपड़े कम करके वसुधा पर सरे-आम नग्नता का नंगा नाच दिखा रही लड़कियों से” एक ज़माना था कि हाथ और चेहरे […]

सामाजिक

रुक जाईये ये महज़ आकर्षण है

प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं एक ख़ामोशी है, सुनती है, कहा करती है न ये बुझती है, न रुकती है, न ठहरी है कहीं नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है, सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो। आहा… गुलज़ार […]

भाषा-साहित्य

साहित्य बौद्धिक स्तर को बढ़ाने की पुड़िया है

सोचिए साहित्य न होता तो? ज्ञान का स्तर बुद्धि के नक्शे में नीचे की सतह पर मृत्युशैया पर लेटा होता। साहित्य समाज का दर्पण है। हर भाव, हर रस, रुप, रंग, विचार और घटनाओं को अभिव्यक्त करने का ज़रिया है साहित्य। साहित्य का आगमन वो क्रान्ति है जिसने प्रबुद्ध लेखकों को अपनी कल्पना और विचारों […]

सामाजिक

आधुनिकरण ने रिश्तों की मर्यादा ही ख़त्म कर दी

माना कि ज़िंदगी की जद्दोजहद से जूझते इंसान को कुछ पल खुशियों के, हँसी मजाक के चाहिए होते है जिसका सोशल मीडिया बहुत सुंदर माध्यम है। सोशल मीडिया पर हमें सारी सामग्री मिल जाती है, अच्छी बात है। तो आज बात करते है लोगों को एंटरटेन करने वाले मिम्स और विडियोज़ की। आज तक सिर्फ़ […]

सामाजिक

विधवाएँ आज भी अभिशप्त क्यूँ

क्यूँ सिर्फ़ औरतों के लिए हर परंपरा, हर नियम-धर्म पालने की परंपरा सदियों से दोहराई जा रही है? कल एक पढ़े लिखे परिवार के बेटे की शादी में जाना हुआ, मैंने देखा सुंदर सजावट और रंग-बिरंगी कपड़ों में सज-धज कर आए मेहमानों के बीच लड़के की बुआ रजनी जो दो साल पहले चालीस साल की […]