कहानी

नये सूरज का उदय

काॅलेज केन्टिन में सबसे अलग उदास और अपने आप में गुम बैठे अंश से उसकी दोस्त सिमोन ने कहा, “come on यार आज फ्रैंडशिप डे के दिन यूँ उदास और अकेला मत बैठ, चल हम सब CCD जा रहे है; वहाँ बैठकर गप्पें लड़ाते एक दूसरे को फ्रैंडशिप बेल्ट बाँधते है।” अंश ने दूसरी ओर मुँह घूमाते कहा, “तुम जाओ मेरा मूड़ नहीं” सिमोन ने कहा, “क्या बात है? वैसे मैं पिछले कई दिनों से देख रही हूँ तुम अपने आप में खोये-खोये रहते हो, जैसे तुम्हारे दिमाग में कुछ जद्दोजहद चल रही हो। तुम्हारा ध्यान न पढ़ाई में है न तुम पहले की तरह खुश रहते हो। क्या बात है कोई प्रोब्लम है क्या?” अंश ने चिढ़ते हुए कहा, please yaar don’t disturb me mind your business n leave me alone सिमोन को बहुत बुरा लगा, इतने सालों की दोस्ती में आज पहली बार अंश का ऐसा व्यवहार आहत कर गया। अंश को अकेला छोड़ कर सिमोन बाकी दोस्तों के साथ CCD चली गई। सिमोन के जाते ही अंश को अपने व्यवहार पर पछतावा हुआ! ये मैंने ठीक नहीं किया, अपनी निज़ी ज़िंदगी का गुस्सा यूँ अपनी प्यारी दोस्त पर उतारना गलत बात है। पर क्या करूँ? मेरी परेशानी न किसीसे कह सकता हूँ, न सह सकता हूँ। कैसे कहूँ कि इस उम्र में मेरी माँ का चक्कर किसी ओर के साथ चल रहा है। क्या माँ को ये सब शोभा देता है? कैसे स्वीकार करूँ अपनी माँ का अफ़ेयर? परिस्थितियों से जूझते अंश चीड़चीड़ा और ज़िंदगी के प्रति नीरस होता जा रहा था। इस तरफ़ सिमोन को कुछ देर के लिए बहुत बुरा लगा, लेकिन फिर उसने सोचा, तो क्या हुआ कि अंश आज चीढ़कर गुस्सा हो गया! जरूर कुछ बात है वरना मेरा दोस्त ऐसा तो बिलकुल नहीं। कुछ भी करके उगलवाना पड़ेगा कि उसकी परेशानी क्या है, वरना यूँ डिप्रेश रहते अंश अपना करियर खराब कर लेगा। दोस्त की बात का क्या बुरा मानना। अगर दोस्त की मुश्किल, उसका दर्द दूसरा दोस्त बाँट न सकें तो दोस्ती किस काम की और एक ठोस निर्णय के साथ सिमोन घर आ गई। 

दूसरे दिन सुबह ही अंश को फोन करके बता दिया, हम आज शाम नरिमान प्वाइंट पर मिल रहे है मुझे तुमसे जरूरी बात करनी है। मैं कोई बहाना नहीं सुनना नहीं चाहती समझे..!अगर मुझे सच में दोस्त मानते हो तो जरूर आना। अंश सिमोन जैसी सच्ची दोस्त को खोना नहीं चाहता था, अंश ने सोचा शायद सिमोन ही मेरी असमंजस का कोई रास्ता दिखाए। क्यूँ न सिमोन से अपनी परेशानी शेयर करूँ? आख़िर सुख-दु:ख साझा करने के लिए ही तो हम दोस्त बनाते है और शाम को सिमोन से मिलने का मन बनाकर काम में लग गया। 

शाम होते ही अंश समय से पहले ही सिमोन से मिलने चला गया। तय की हुई जगह पर पहुँच कर अंश सिमोन का इंतज़ार करने लगा। अपनी परेशानी सिमोन को बताने का मन बनाते ही दिल थोड़ा हल्का हो गया। गहरी सोच में डूबकर अंश दूर आसमान को देख रहा था कि पीछे से सिमोन ने आवाज़ दी, “hi ansh wats up” अंश ने कहा, nothing i just waiting for u” सिमोन अंश के बगल में बैठ गई और साथ लाए पोपकाॅर्न का पैकेट खोलकर बात की शुरुआत करते बोली, आजकल लाइफ़ साली बोरिंग लग रही है सोच रही हूँ मुंबई की चहल-पहल से दूर लोनावला या खंड़ाला घूमने चली जाऊँ। क्या बोलता है? चलेगा साथ?” अंश ने कहा, मेरी तो पूरी लाइफ़ ही घूम गई है, कहीं दिल नहीं लगता। मेरा तो मन कर रहा है दुनिया को ही आग लगा दूँ।” इतने में जहाँ अंश और सिमोन बैठे थे उनके सामने से एक युगल गुज़रा, जो एकदम अंश की माँ और उसकी माँ के दोस्त श्रीकांत वर्मा की उम्र का था। उन पर नज़र पड़ते ही अंश के ख़यालों का ज़ायका बिगड़ गया और बोला, “ये आजकल की औरतें भी न शर्म नाम की चीज़ ही नहीं, न ज़माने का डर उम्र का तो लिहाज़ करती! बालों में चाँदी उग आई फिर भी इश्कबाज़ी नहीं छूटती।” सिमोन आँखें बड़ी करते आश्चर्य से बोली wait wait wait एक मिनट what do u mean क्या मतलब है तुम्हारा? क्यूँ उस औरत के इश्क फ़रमाने पर तुम्हें एतराज़ है? क्या गलत कर रही है वो? और जनाब इश्क फ़रमाने की कोई उम्र नहीं होती, किस ग्रंथ में इश्क के लिए उम्र तय की गई है। प्यार और एहसास इंसान के दिल में मरते दम तक रहता है समझे। और फिर पहले ये बताओ कि तुम्हें आपत्ति किस बात से है वो औरत इश्क फ़रमा रही है इससे, या औरत होकर इश्क फ़रमा रही है इससे? और हो सकता है वो दोनों प्रेमी न होकर पति-पत्नी हो! ऐसे कैसे किसीके बारे में राय बाँध सकते हो। अंश ने सिमोन का हाथ अपने हाथ में लेते कहा, sorry yaar मैं जानता हूँ आजकल मैं तेरे साथ अजीब व्यवहार कर रहा हूँ! पर क्या करूँ? ज़िंदगी के कुछ सवालातो के जवाब ढूँढ नहीं पा रहा हूँ। क्या सच, क्या झूठ तय नहीं कर पा रहा हूँ। अगर तू मेरी परेशानी अपने तक ही रखने का वादा कर तो तेरे साथ कुछ बातें शेयर करना चाहता हूँ। सिमोन ने कहा बस क्या..! इतना भी भरोसा नहीं अपनी बेस्ट फ़्रेंड? पर अंश ने गला साफ़ करते कहा, “क्या बताऊँ? कहाँ से शुरू करूँ? सुनकर तुम क्या सोचोगी पता नहीं लेकिन कहना जरूरी है। तुम नहीं जानती मेरी लाइफ़ में क्या चल रहा है। मैं सिंगल मदर का इकलौता बेटा हूँ। मैं जब दस साल का था तब मेरे पापा गुज़र गए। मम्मी-पापा के बीच बेइन्तहाँ प्यार था। पापा, मम्मी को राजरानी की तरह रखते थे और मुझे राजकुमार की तरह। मैं और मम्मी, पापा की दुनिया थे लेकिन हमारी खुशहाल ज़िंदगी को पता नहीं किसकी नज़र लग गई, पापा एक एक्सीडेंट में मुझे और मम्मी को अकेला छोड़ कर चल बसे। मेरी मम्मी ने अकेले मुझे पाल पोषकर बड़ा किया, पढ़ाया, लिखाया, और अच्छे संस्कार देकर एक अच्छा नागरीक बनाया no doubt मैं अपनी माँ का ऋणी हूँ। पर अपने पापा से मम्मी की बेवफ़ाई कैसे बर्दाश्त कर लूँ। मम्मी एक प्राइवेट फ़र्म में जाॅब कर रही है। आजकल उनकी ऑफ़िस में दिल्ली से कोई श्रीकांत वर्मा करके नये मैनेजर आए है, शायद वो भी अकेले है। विधुर है, या शादी ही नहीं की ये मुझे नहीं मालूम। मम्मी की नज़दीकियाँ आजकल उनसे काफ़ी बढ़ रही है। कभी-कभी मम्मी को अपनी गाड़ी में घर छोड़ने भी आते है और फिर खाना खाकर ही जाते है। और तो और मम्मी भी उनके साथ काफ़ी खुश है। उनकी कंपनी में मानों छोटी लड़की बन जाती है। वो मम्मी को शोपिंग पर भी ले जाते हैं और मूवी देखने भी। जब दोनों एक सोफ़े पर बैठकर टीवी देख रहे होते है तब मेरा दिमाग हट जाता है। मम्मी पर खूब गुस्सा आता है और तब मैं घर से बाहर चला जाता हूँ। मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे मम्मी मुझे अब नज़र अंदाज़ करने लगी है, और वो इंसान मेरी माँ को मुझसे छीन रहा है। मम्मी से उन दोनों के रिश्ते के बारे में न खुलकर बात कर सकता हूँ, न उन दोनों का रिश्ता सह सकता हूँ। क्यूँ मम्मी ऐसा कर रही है? उनको मेरा, रिश्तेदारों का, या समाज का ख़याल नहीं क्या? ये उम्र है ये सब करने की? मेरी माँ बदचलन है अब तुम ही बताओ मेरी जद्दोजहद, मेरा गुस्सा, मेरी परेशानी जायज़ है कि नहीं?

सिमोन कुछ देर चुपचाप सोचती रही, फिर चुप्पी तोड़ते बोली, “वाह रे स्वार्थी इंसान..! अपनी ही दुनिया में मस्त रहने वाले पहले तो ये बताओ जिस माँ ने तुम्हें नौ महीने पेट में रखा, पाल पोष कर बड़ा किया उसे बदचलन कहते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती? क्या एक उम्र के बाद इंसान, इंसान नहीं रहता? दिल, दिल नहीं रहता? एहसास मर जाते है? विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण ख़त्म हो जाता है? शारीरिक जरूरतें ख़त्म हो जाती है? और मानसिक तौर पर किसी खास इंसान की कमी खलती नहीं क्या? क्यूँ तुम मर्द लोग औरत का हल्का सा खुश होने पर जलते हो? तुम्हारी माॅं ज़िंदगी की चुनौतियों से अकेले लड़ते थक गई है अगर श्रीकांत सर के कॅंधे पर सर रखकर ज़रा सा बोझ हल्का कर लिया तो कौनसा पहाड़ टूट पड़ा? इंसान को भावनात्मक सहारा जीने का हौसला देता है।

यही सब एक मर्द करे तो क्यूँ किसीको कोई एतराज़ नहीं होता? हर रिवायत, हर परंपरा, हर बंदीश औरतों के मत्थे ही क्यों मड़ दी गई है? क्या औरत को खुश रहने का हक नहीं? क्या तुमने कभी अपनी मम्मी के पास बैठकर उनसे पूछा, कि मम्मी तुम्हारी जरूरत क्या है, तुम्हारे अरमान क्या है, तुम्हारी खुशी किसमें है? तुम थक तो नहीं गई? तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें वो सारे सुख देने के लिए अपनी आधी उम्र खर्च कर ड़ाली, तुम्हें काबिल बनाया अब तुम बड़े हो गए तुम्हारी अपनी दुनिया है, दोस्त है माँ-बेटे का रिश्ता चाहे कितना भी गहरा हो कुछ बातें, कुछ एहसास एक औरत बेटे के साथ शेयर नहीं कर सकती। उनकी अपनी जरुरतें होती है, उसे भी ऐसा कोई चाहिए जो उन्हें समझे, उनकी बात सुनें, उन्हें प्यार करें और ज़िंदगी के आख़री पड़ाव में उनका साथ निभाए। और दर असल इसी उम्र में इंसान को किसी अपने की बेहद जरूरत महसूस होती है। प्यार और आकर्षक तो ठीक है पर अपनापन चाहिए होता है, सहारा चाहिए होता है। क्या गलत है! अगर तुम्हारी मम्मी और श्रीकांत सर को एक दूसरे की कंपनी अच्छी लगती है, क्यूँ तुम उन दोनों के रिश्ते से परेशान हो? तुम्हारी मम्मी को खुश देखकर तुम्हारे पापा की आत्मा भी खुश हो रही होगी। तुम भी श्रीकांत सर को अपना मित्र और अभिभावक समझो, न कि दुश्मन। तुम्हें खुश होना चाहिए कि तुम्हारी मम्मी को इस उम्र में एक ऐसा साथी मिल गया जो उनका हमकदम बनकर उनकी ज़िंदगी सँवारने की कोशिश कर रहा है। तुम इक्कीसवीं सदी के आधुनिक युग के लड़के हो, सोच को विस्तृत करो और परिवर्तन को अपनाने की कोशिश करो, अपनी मम्मी के एहसास का सम्मान करो। श्रीकांत सर के करीब जाने की कोशिश तो करो शायद तुम्हें भी उनके रुप में अपने पापा की कमी पूरी करने वाला एक आत्मीय मिल जाए। 

औरत भी इंसान है अंश, उसे भी अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीने का पूरा अधिकार है। तुम अपनी पसंद-नापसंद उन पर नहीं थोप सकते। उम्र के इस पड़ाव में वो खुद को अकेला और असुरक्षित महसूस करती है। तुम्हें हँसी खुशी उन दोनों का रिश्ता अपना लेना चाहिए। एक बार उन दोनों के नज़दीक जाकर तो देखो! उनके प्रति तुम्हारी सारी गलतफ़हमी दूर हो जाएगी। तुम्हारी माँ ने तुम्हें आज तक सबकुछ दिया, अब तुम्हारी माँ को उनकी खुशी और सारे सुख देने की तुम्हारी बारी है। जब हमारे जैसे युवा अपनी सोच बदलेंगे तभी समाज बदलेगा और तभी नये युग का निर्माण होगा।

सिमोन की बातें एकटक सुन रहे अंश का दिमाग दोराहे पर रुक गया। अब भी अंश को अपनी असमंजस का समाधान नहीं मिला। आख़िरकार एक भारतीय पुरुष की रूह उसके भीतर पनप रही थी कैसे बर्दास्त होती अपनी माॅं की किसी मर्द के साथ नज़दीकियाॅं। बचपन से ही लड़कों के मन में बीज बो दिया जाता है कि स्त्री जाति एक दायरे में ही रहेगी मर्दों की मर्ज़ी और पसंद के हिसाब से जिएगी अंश भी उस परंपरा का पथिक था तो ओके सिमोन मैं तुम्हारी बातों पर गौर करके देखता हूॅं, कहते उठ खड़ा हुआ और घर की ओर चल दिया। घर आते ही अंश की मम्मी ने पूरे डेढ़ लाख का बिल अंश को दिखाया जो सोसायटी रिनोवेशन के खर्च का हिसाब था और चिंतित होते बोली, “बेटा कहाॅं से लाएंगे इतने सारे पैसे? मैं सोच रही हूॅं ये घर बेचकर छोटा सा फ़्लेट ले लेते है, तू क्या कहता है?” अंश मन ही मन बोला, “कहो न अपने आशिक से ऐश करने पहुॅंच जाता है तो अब आपके खर्चे भी उठाए।” लेकिन आज तक माॅं के सामने ऐसी छिछोरी बात कभी बोली नहीं थी तो मनकी बात हलक में ही दफ़न करते बोला, “देखते हैं कहीं से इंतज़ाम होता है तो वरना बेच देंगे।”

इस बात को करीब पंद्रह दिन बीते होंगे कि सोसायटी की ओर से एक लेटर आया। आपके द्वारा भेजी गई राशि मिल गई है धन्यवाद। दोनों माॅं-बेटे असमंजस में पड़ गए हमने तो पैसे दिए नहीं तो आख़िर राशि जमा करवाई किसने? जाॅंच करने पर पता चला श्रीकांत शर्मा ने पूरा पेमेंट कर दिया था। रागिनी ने तुरंत श्रीकांत को फोन करके पूछा, अरे..! आपने क्यूॅं सोसायटी रिनोवेशन के पैसे दिए ये हमारी प्रोब्लम थी, आपने क्यूॅं तकलीफ़ उठाई? और आपको बताया किसने कि सोसायटी को हमें पैसे देने हैं? ये आपने ठीक नहीं किया आपका ये अहसान कैसे उतार पाऊॅंगी?” श्रीकांत ने कहा, अरे ज़रा आराम से..! साॅंस तो लो सब बताता हूॅं। देखो.. जिस दिन तुम अपने बेटे को सोसायटी नोटिस के बारे में बता रही थी और मकान बेचने की बात कर रही थी तब मैं तुम्हारे घर के बाहर ही खड़ा था। अंदर आने से पहले मैंने तुम दोनों की बात सुन ली थी। और फिर ये कहकर तुमने मुझे पराया कर दिया कि अहसान कब उतार पाऊॅंगी, आख़िर अपने ही तो अपनों के काम आते हैं न? तो बस मैंने भी वही किया। इसका मतलब ये हुआ कि तुम मुझे अपना नहीं समझती।” फोन स्पीकर पर था तो अंश ने श्रीकांत की सारी बातें सुन ली। जैसे उसके मन में उपजे ख़याल का प्रतिसाद श्रीकांत ने दे दिया हो, अंश थोड़ा शर्मिंदा हो गया। श्रीकांत के प्रति हल्का-सा अपनापन उठा लेकिन माॅं पर अपना एकाधिकार याद आते ही मन दूसरी तरफ़ मूड़ गया।

अब भी वही उलझन और अपनी माॅं के प्रति ग्रसित मन लिए घूम रहा था अंश। उसी उधेड़ बुन में एक दिन अंश अपनी बाइक पर जा रहा था कि फूल स्पीड़ में आ रही कार के साथ टकरा गया। अंश के मोबाइल से नंबर ढूॅंढकर किसी भले इंसान ने अंश की मम्मी को खबर दे दी और कहा, “बहन जी आप सिटी होस्पिटल पहुॅंचिए हम आपके बेटे को वहाॅं ले जा रहे है।” रागिनी तुरंत सिटी होस्पिटल पहुॅंच गई। रास्ते में से श्रीकांत को भी फोन कर दिया तो वह भी पहुॅंच गए थे। रागिनी अपने बेटे की हालत देखकर फूट-फूटकर रोने लगी। श्रीकांत ने रागिनी को संभाला और डाॅक्टर से कहा, “डाॅक्टर अंश मेरा बेटा है उसे कुछ नहीं होना चाहिए। आप ख़र्च की चिंता बिलकुल न करें बाहर से जितने भी स्पेशलिस्ट बुलाने पड़े बुला लीजिए और अंश को जल्दी से ठीक कर दीजिए।” डाॅक्टर ने कहा,”देखिए..! घबराने की जरूरत नहीं हेलमेट की वजह से आपका बेटा बच गया है और ईश्वर कृपा से सिर्फ़ हाथ पैर में ही चोट आई है। पैर की हड्डी टूट गई है जो एक महीने के प्लास्टर से ठीक हो जाएगी। ये सुनकर श्रीकांत और रागिनी ने राहत की साॅंस ली। अंश को एक हफ़्ता अस्पताल में रखना पड़ा, उस एक हफ़्ते में श्रीकांत ने अंश की सगे पिता की तरह देखभाल की और जब तक पैर में प्लास्टर रहा अंश का सारा काम श्रीकांत ने संभाला। अंश ने इन दिनों श्रीकांत का एक नया रुप देखा जो एक वात्सल्य सभर और बच्चे की परवाह करने वाले पिता का होता है। मन की कड़वाहट मिठास में बदलने लगी थी। आहिस्ता-आहिस्ता अंश का  हृदय परिवर्तन होने लगा था। उस दिन सिमोन की कही एक-एक बात पर विचार करते अंश के भीतर नाराज़गी पिघलने लगी और सकारात्मकता जन्म लेने लगी। अंश को अब लगने लगा कि श्री अंकल उसकी मम्मी के साथ-साथ उसका भी भावनात्मक सहारा बन सकते है। श्री अंकल ही वह कड़ी है जो हमारे अधूरे परिवार को जोड़कर पूरा कर सकती है। ठीक होते ही अंश सबसे पहले सिमोन से मिलने गया और उसे गले लगाते बोला, “thanks yaar तू मेरी सबसे प्यारी दोस्त है। तुमने एक अंधेरे कुएँ में ज्ञान और समझदारी का दीप जलाया है। उस दिन जो तुमने कहीं वो सारी बातें मेरे दिमाग में क्यूँ नहीं आई? क्यूँ हम माँ को लेकर इतने पज़ेसिव होते है? क्यूँ उनके एहसास को समझने की कोशिश तक नहीं करते? सही कहा तुमने, हर इंसान को अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीने का पूरा अधिकार है। आज के बाद मैं अपनी माँ की हर खुशियों में रंग भरूँगा, उनके हर फैसले का सम्मान करूँगा। श्री अंकल से मैं खुद खुलकर बात करूँगा और सबकी रज़ामंदी से दोनों के रिश्ते पर मोहर लगाऊँगा। एक नई परंपरा और सकारात्मक सोच को समाज के आगे रखूँगा हो सकता है इस पहल से और माँओ के लिए खुशियाँ पाने का रास्ता खुल जाए। बच्चों की बुद्धि पर जंक लगे ताले की चाबी मिल जाए और अपने पेरेंट्स की भावनाओं को समझने का दरवाज़ा खुल जाए। चल मैं चलता हूँ, अपनी माँ के आँचल में खुशियों की सौगात भरने मिलते है फिर।” सिमोन ने कहा all the best मेरी बातों को समझने के लिए शुक्रिया। आज सिमोन को अपना पहले वाला हँसता-खेलता दोस्त वापस मिल गया था उस खुशी को celebrate करते सिमोन ने कुल्फ़ी वाले से कहा, “भैया एक मलाईदार ठंड़ी-ठंड़ी कुल्फ़ी दे दो मुँह मीठा करना है।

अंश ने आते-आते रास्ते में आइसक्रीम पैक करवाई आज अपनी माॅं के साथ बैठकर आइसक्रीम खाऊॅगा। घर पहुँचते ही अंश ने देखा उसकी मम्मी और श्रीकांत सर पास-पास बैठकर टीवी देख रहे थे। आज अंश को वो नज़ारा देखकर बिलकुल बुरा नहीं लगा। रसोई में जाकर अपने साथ लाए आइसक्रीम को तीन कटोरी में निकालकर ले आया और अपनी मम्मी और श्री अंकल के सामने रखते बोला। श्री अंकल क्या मैं आपको आज से पापा कहकर बुला सकता हूँ? श्रीकांत को जैसे दुनिया की सारी दौलत मिल गई। उन्होंने अंश और उसकी मम्मी को नम आंखों से गले लगाते कहा, “आज से तुम दोनों मेरी दुनिया हो। मुझे सबकुछ मिल गया।” अंश की मम्मी के गले में अटके खुशियों के शब्द आँखों के ज़रिए फूट पड़े। 

फिर क्या था! घर का मानों माहौल ही बदल गया। श्रीकांत और अंश इतने करीब आ गए कि कोई कह नहीं सकता कि दोनों में खून का रिश्ता नहीं। सब साथ मिलकर इनडोर गेम खेलते, पिकनिक पर जाते और स्कूबा डाइव करते । तीनों हँसी-खुशी जीवन बिताने लगे। एक दिन सुबह अचानक अंश ने कहा, “मम्मी-पापा तैयार हो जाईये हमें कहीं जाना है।” श्रीकांत और रागिनी बिना कोई सवाल किए तैयार होकर गाड़ी में बैठ गए और बोले, “जो हुकूम हमारे आका, चलिए ले चलिए जहाँ ले जाना चाहते हो।” अंश ने गाड़ी स्टार्ट की और कुछ ही समय में आर्य समाज मंदिर के सामने गाड़ी रुकी। अंश ने कहा, “आज तक कोई बेटा अपने मम्मी-पापा की शादी का गवाह नहीं बना होगा! आज मैं बकायदा आपको पति-पत्नी के रिश्ते में बँधते देखना चाहता हूँ।” माॅं ने आज तक मुझे सबकुछ दिया है, आज मैं अपनी माॅं को उनकी खुशी उनका प्यार देना चाहता हूॅं। श्रीकांत और रागिनी ने आसमान की ओर देखा, आज एक नये सूरज का उदय हुआ था। आज एक अधूरा परिवार जो पूर्ण हुआ था।

— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर