आलोक को उसकी पत्नी खुशबू ने विवाह की वर्षगाँठ के दिन खुशख़बरी दी, दूसरी बार मां बनने की। सुनकर आलोक आनंदित हुआ। उसकी बेटी रिया अब स्कूल जाने लगी थी, इसलिए यह सही समय था दूसरे बच्चे के लिए। खुशबू की सास शांति अशांत थी, क्योंकि उसकी बहू ने लिंग परीक्षण करवाने से साफ मना कर दिया था। शांति नहीं चाहती थीं कि दूसरी बार पोती का जन्म हो।
शांति ने खुशबू को खरी – खोटी सुनाते हुए धमकाते कहा, “अगर फिर लड़की पैदा हुई तो ना तो मैं उसे देखूंगी, ना ही छूऊंगी और ना ही उसका पालन – पोषण करूंगी। “ सास के धमकाने पर खुशबू घबरा गई। उसने पति से सास की शिकायत की तो आलोक ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा, “ कहने और करने में बड़ा अंतर होता है। सास और दादी का कर्तव्य तो निभाना ही पड़ता है। तुम हमेशा ख़ुश रहा करो। भगवान ने चाहा तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। “ पति की धाड़स भरी बातों ने मानो जादू कर दिया खुशबू पर। अब वो चिंतामुक्त रहने लगी।
हुआ वही, जिसकी खुशबू को आशंका थी। दुबारा बेटी का जन्म हुआ। शांति अस्पताल में पोती पैदा होने का समाचार सुनकर, जच्चा – बच्चा को देखे बिना, दुखी मन से ही घर लौट आयी। मां के बुरे बर्ताव से आलोक को धक्का लगा। खुशबू अस्पताल से बच्ची के साथ घर लौटी तब भी सास का मन नहीं पसीजा। आलोक ने मां को समझाने की कोशिश की तो बिफर पड़ी बेटे पर, “ हमारे घर में क्या देवी ने जन्म लिया है जो मैं उसकी आरती उतारूँ। “ आलोक मन मसोस कर रह गया।
सास के मुंह से बेटी के ताने – उलाहने सुन – सुनकर तंग आ चुकी खुशबू शेरनी की तरह दहाड़ते गरजी सास पर “ इस घर में देवी के नाम पर हर हफ्ते उपवास किया जाता है। नवरात्र में नौ दिनों तक दुर्गा माता के व्रत रखे जाते हैं। रोज़ाना मंदिर में जाकर माता की पूजा, अर्चना की जाती है। दीवाली में लक्ष्मी माता की पूजा में घर के सारे सदस्य शामिल होते हैं। उसी घर में बेटी के जन्म देने पर इतनी हाय – तौबा क्यों? ऐसी दोहरी मानसिकता क्यों? बेटी को जन्म देना क्या पाप है? लड़का या लड़की को जन्म देने के लिए स्त्री माध्यम मात्र है, जिम्मेवार हर्गिज नहीं। विज्ञान ने साबित कर दिया है कि बच्चे की लिंग निश्चितता पुरूष के क्रोमोजोन्स पर आधारित है। अगर दोष देने का इतना ही शौक है तो फिर अपने बेटे को दीजिए, जोकि इसके लिए पूरी तरह जिम्मेवार है। “ बहू का दुर्गावतार देख कर सास सिरह उठी। कुछ बोलने के लिए मुंह खोला, मगर शब्द सूझ नहीं रहे थे। शांति बुत बनी बहू को एकटक निहारती रही।
– अशोक वाधवाणी