ग़ज़ल – रिश्ते टूट जाते हैं
भरोसा जब दरकता है तो रिश्ते टूट जाते हैं,
सलीके जिंदगी जीने के हमसे रूठ जाते हैं।
सियासत बन गई ख़ुदगर्ज़ जब कोई तवायफ-सी,
सरे -बाज़ार तब अस्मत दरिंदे लूट जाते हैं।
अदालत भी ज़माने की बड़ी बेदर्द होती है,
गवाही के बिना सच भी यहाँ हो झूठ जाते हैं
कभी सपने सजाए थे मगर बिखरे सभी ऐसे
उफनकर बुलबुले बारिश में जैसे फूट जाते हैं।
मुहब्बत भी बग़ावत है कभी करके ज़रा देखो,
चढ़े हैं जो मुलम्मेंं हम पे सारे छूट जाते हैं।
— डॉ रामबहादुर चौधरी ‘चंदन’