कुण्डलिया- गौ माँ
-1-
गौ माँ!गौ माँ!!कर रहे, सुलभ न चारा घास।
मारी-मारी फिर रहीं,गौ माँ आज निराश।।
गौ माँ आज निराश, सड़क पर भटकें सारी।
गली – गली में रोज, नरक झेलें बेचारी।।
‘शुभम’ खोखला नेह, झूठ वे कहते हैं माँ।
खाती सभी अखाद्य,आज वे अपनी गौ माँ।
-2-
माता के सम्मान से, वंचित सारी गाय।
दूध पिया फिर छोड़ दीं,हुई दूध से आय।।
हुई दूध से आय, पूजते अर्थ कमाने।
खातीं छुट्टा खेत,भेज दीं डंडा खाने।।
‘शुभम’ स्वार्थ साक्षात,गीत नर झूठे गाता।
पिटवाता नित गाय, और कहता गौ माता।।
-3-
शाला गौ की नाम की,मिले न चारा घास।
फोटो हैं अख़बार में,भक्त न जाते पास।।
भक्त न जाते पास,सुर्खियों में है सेवा।
गाय हुई कंकाल, चाभते नेता मेवा।।
‘शुभम’ गाय के नाम, वसूलें चंदा लाला।
करते हैं मधुपान ,उजड़ती हैं गौ शाला।।
-4-
रोटी पहली गाय की, नहीं खिलाते लोग।
बासी करके फेंकते,फैलाते बहु रोग।।
फैलाते बहु रोग, सड़क ,नाला या नाली।
पर न खिलाते गाय,एक रोटी भी काली।
‘शुभम’बजाते गाल,करें वे भाषण चोटी।
भूखी मरती गाय, नहीं घर पहली रोटी।।
-5-
पीटे हमने ढोल ही, उच्च बड़े संस्कार।
बस गालों में जोर है,भारी हृदय – विकार।।
भारी हृदय विकार,गाय को कहते माता।
चूस थनों से दूध, पालता उन्हें विधाता।।
‘शुभम’ विवश हैं गाय,व्रणों को खाते चींटे।
नाम छपा अख़बार, ढोल भाषण के पीटे।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’