कविता

आदमी और कुत्ता

कल रात  गली के नुक्कड़
से गुजर रहा था जब
एक आवाज कानों में पड़ी
कोई कह रहा था
किसी का नाम लेकर
वो तो कुत्ता है
पीछे मुड़ कर जो देखा
स्पष्ट कुछ नजर आया नहीं
उम्र के साथ नजर भी धुंधला गई है
स्ट्रीट लाइट भी मंद थी
इसलिए किसी को पहचाना नहीं
लेकिन मस्तिष्क में एक
हलचल सी हो गई
आदमी की तुलना
कुत्ते से  क्यों की गई
उसके शब्दों का विश्लेषण करने के लिए
एक कोशिश की मैंने
तुलनात्मक
कुत्ते और आदमी के आपसी गुणों की
आदमी को कुत्ता कह कर
तौहीन आदमी की नहीं
की गई है कुत्ते की
कुत्ता सा वफादार
क्या आदमी है
वफ़ा के नाम पर
वो तो बेवफ़ा है
कुत्ते जैसी स्वामिभक्ति की
आदमी से क्या तुलना
कुत्ता जान कुर्बान कर देता है
अपने मालिक पर
हम हाथ रंग लेते
अपने मालिक के ही खून से
कुत्ते ने लाड़ प्यार के एवज में
किया नहीं कभी कोई विश्वास घात
आदमी तो मौका मिलते ही
कर जाता है घात
अब बताओ खुद आप
क्या यह तौहीन नहीं कुत्ते जाति की
जो करते हैं
उसकी तुलना आदमी से

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020