तन, मन और धन से खुशमिज़ाज़ श्रीमान् सोहेल शेख जी कटिहार जनपद अंतर्गत मनिहारी अनुमंडल के सुयोग्य सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं । क्षेत्र की राजनीति के जाने-पहचाने हस्ताक्षर हैं ।
वे किस राजनीतिक दलों से सम्बद्ध हैं, वहाँ तक मैं जाना नहीं चाहता, क्योंकि विचारधाराओं की भिन्नता के कारण ही स्वस्थ प्रतिपक्ष बनता है और स्वस्थ प्रतिपक्ष सत्ता-अंधता की विलासिता को ‘चाबूक’ के विन्यस्त: कन्ट्रोल करता है ! एक दिन अचानक ही एक कोने में मेरी उनसे जान-पहचान हो जाती है, हलुवे के बहाने !
मित्रता का अंकुरण के बीच तथा मेरी दोनों पुस्तकें पाने की व्याकुलता के बीच एक संध्या वो मेरे घर पर साधिकार धमक जाते हैं, जबकि मैं तब अंत:परिधान में होता हूँ और असहज हो जाता हूँ, किन्तु ये पहले व्यक्ति हैं, जो कि मेरी पुस्तकें पाने की लालसा इसतरह जताई, जो मनिहारी के बुद्धिजीवी वर्गों में यह लालसा अबतक देखने को नहीं मिल पाई है और मुझे इस लालसा से अंतरतम खुशी मिली !
उम्र के लिहाज से सोहेल जी मेरे छोटे भाई सदृश्य हैं, तथापि इस मोहतरम का दिल ‘विशाल’ है। पुस्तकद्वय ‘पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद (शोध)’ और ‘लव इन डार्विन (नाट्य पटकथा)’ न सिर्फ़ उनकी हाथों है, अपितु वे पुस्तक-द्वय पढ़ भी चुके हैं और पाठकीय प्रतिक्रिया से अवगत भी करा चुके हैं !
आप राजनीति में खूब आगे बढ़िए, किन्तु स्थापित होने के चक्कर में अपनी मौलिकता कभी मत खोइये ! बिंदास और बेबाक रहिए । कवि बच्चन कहा करते थे– ‘अगर मनोनुकूल मिला, तो ठीक और नहीं मिला, तो भी ठीक !’ अनेकानेक आभार और भविष्यार्थ हृदयश: धन्यवाद, शेख जी !
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मदर टेरेसा की जन्मतिथि और पुण्यतिथि में अंतर 10 दिनों का है।
मदर टेरेसा सिर्फ़ 12 वर्ष की उम्र में ही मानव-सेवा की ओर संलग्न हो गई थी। सरकारी स्कूल में पढ़ते समय वह सोडालिटी की बाल सदस्या भी बन गई। वर्ष 1962 में भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ प्रदान की थी, तो उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार भी प्राप्त हुई थी।
भारत की नागरिकता प्राप्त ये समर्पित ‘नन’ मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के कुष्ठ रोगियों की ओर से ‘मदर’ कहलाने लगी, तो वे स्पेन के महान संत टेरेसा से काफी प्रभावित थीं, जिन्होंने स्पेन के लोगों को नए जीवन जीने का अमर-संदेश दिया था। फिर 18 की उम्र में वे संत टेरेसा से प्रभावित हो संन्यासिन हो गई। फिर अपने आदर्श और महान संत टेरेसा से प्रेरित होकर उन्होंने अपना नाम टेरसा रख ली और फिर ‘मदर’ संबोधन कर भारत ने समुचित प्यार दिया ।
वे पहलीबार 1929 में भारत आई थी। भारत पहुंचते ही सबसे पहले उनको दार्जिलिंग में नोविसिएट का कार्य सौंपा गया। यहां से कोलकाता के इंटाली के सेंट मैरी स्कूल में भूगोल की टीचर बनकर उन्होंने बच्चों को पढ़ाया।