निज घर क्यों वंचित रहे,ध्यान धरे सरकार।
दिवस मनाने मात्र से,कैसे हो उद्धार।।
हिंदी भाषा में सभी, प्रकट करें उद्गार।
सीधी,सादी है सरल, विस्तृत है संसार।।
आखर-आखर लाख के,मीठे इसके बोल।
हिंदी जननी सम समझ,हिंदी है अनमोल।।
तुलसी मीरा जायसी, बोले जो रसखान।
रचती पीर कबीर की, हिंदी अपनी शान।।
भारतेंदु का युग बना, लेकर जिसकी छांव।
पंत निराला ने धरे, आगे जिसमें पाँव।।
प्रेम चंद ने दी जिसे, एक नई पहचान।
दिनकर ने जिसमें रचे,अनगिन निज मधुगान।।
गीत महादेवी रचित शोभित जिसके शीश।
वो हिंदी कैसे भला, होगी अब उन्नीस।।
— आशा पांडेय ओझा