गीतिका/ग़ज़ल

नारी का सम्मान करो

समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को
बंदिशों में जकड़ी एक भोली भाली नारी को
समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को!
तरह-तरह के छल दुनिया में छल से छली गई
जीत भरोसा उसका,छली बेंच रहे  व्यापारी को
समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को!
नौ दिन देवी समझें फिर जुल्मों अत्याचार करें
मंदिर में प्रतिबंधित देखा है भाग्य की मारी को
समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को!
जिसका जो भी मन सब कहकर चलते बनते हैं
जब तब कड़वे ताने सुनते पाया उस संसारी को
समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को!
नारी का सम्मान करो,कभी नहीं अपमान करो
देख रहा भगवान अत्याचार संग अत्याचारी को!
समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को
नारी से है देश महान,जिससे बढ़ती देश की शान
आंचल में ममता,दया,पलकें अश्कों से भारी को
समझ सको तो समझो औरत की लाचारी को!
— मीना सामंत

मीना सामंत

कवयित्री पुष्प विहार,एमबी रोड (न्यू दिल्ली)