कविता

जीवन

जीवन ,नदी की धारा सम।
बढ़ती जाये पल-पल हरदम।।
मिले जो राह में कुछ भी उसे ।
समेटते चलती जाये नहीं कोई ग़म।।
कुछ संकटों से टक्कर लेता।
बढ़ता जाता घबराता कम।।
धारा जैसी हिम्मत है मानव में।
विश्वास रखे जो अपने पर हरदम।।
 अपने अनुकुल धारा बदल लें।।
न रहेगा जीवन में कोई ग़म।।
नदी को विस्तार चाहिए है होता।
जा समुद्र में समाहित होकर लेती है दम।।
मानव जीवन की पूर्णता भी तब है
जब अन्त होता निकट प्रभु के कदम।।
भोगता है इंसान पूर्व क़े प्रारब्ध को
नरक को ‌क्या देखना,जो देखा वही है क्या कम
— मंजु लता

डॉ. मंजु लता Noida

मैं इलाहाबाद में रहती हूं।मेरी शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है। इतिहास, समाजशास्त्र,एवं शिक्षा शास्त्र में परास्नातक और शिक्षा शास्त्र में डाक्ट्रेट भी किया है।कुछ वर्षों तक डिग्री कालेजों में अध्यापन भी किया। साहित्य में रूचि हमेशा से रही है। प्रारम्भिक वर्षों में काशवाणी,पटना से कहानी बोला करती थी ।छिट फुट, यदा कदा मैगज़ीन में कहानी प्रकाशित होती रही। काफी समय गुजर गया।बीच में लेखन कार्य अवरूद्ध रहा।इन दिनों मैं विभिन्न सामाजिक- साहित्यिक समूहों से जुड़ी हूं। मनरभ एन.जी.ओ. इलाहाबाद की अध्यक्षा हूं। मालवीय रोड, जार्ज टाऊन प्रयागराज आजकल नोयडा में रहती हैं।