कविता

नवजीवन 

मृत्यु भी महोत्सव बन जाता है।
नव  जीवन के इस   संसार में ।
सूर्य भी तो अस्त  हो  जाता है ।
पुनः उदय होने की ही आस में ।
यहाँ कुछ भी शाश्वत नहीं।  है।
इस गतिमान क्षणिक संसार में ।
नदियाँ  समुद्र से जा मिलती हैं।
पुनः  जल से भरने की आस में।
अवसाद में क्यों चले  जाते हो।
समय भी तो पलट जाता है।
पत्ते पुष्प भी समय पर झड़ते हैं ।
नव पल्लव – पुष्प की आस में।
 किस्मत को खुद ही लिखना है।
स्वार्थ भरे इस  नश्वर  संसार में ।
नींद भी टूट जाती  सपनों    भरी।
 ख्वाबों को पूरा करने की आस में।
— मीना जैन दुष्यंत 

मीना जैन दुष्यंत

निवास -गोविंदपुरा भोपाल मध्यप्रदेश M- 9826738861 Email- [email protected] परिचय - शिक्षा - एम .ए. ( हिन्दी ,संस्कृत ,समाजशास्त्र)बी. एड. एम. फिल. ,वैद्य विशारद 2)व्याख्याता (हिन्दी, संस्कृत) शिक्षक -धार्मिक ,आध्यत्मिक प्रवचनकार 3) सामाजिक सेविका -.दस वर्षों से अखिल भारतीय स्तर पर निःशुल्क युवक -युवती परिचय सम्मेलन आयोजित करना।मंच सञ्चालिका 4) वैवाहिक सम्बन्धों( में खटास पड़ने पर )काउंसलर की भूमिका 6)महिलाओं के उत्थान के लिए कार्यरत। 7) कोरोना के समय महती भूमिका निभाने पर कोरोना योद्धा सम्मान समाज जन से। 8) साहित्यिक अभिरुचि.. लेख ,कथा ,कविता ,आदि लिखने पर सम्मान प्राप्त।