शरदागम
शरदागम
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कहुँ मालति-पुष्प खिलें वन में,
कहुँ वायु सुगंध भरे घटिका।
धरती तृण से मनहारि लगे,
सिर ओस बढ़ावत सुंदरता।
धवला धरती सुख में विहँसे,
चहुँओर सुगंध -सुशीतलता।
दिन घोर तपे,निशि में पसरे,
शरदेन्दु- सुधा की विभास -लता।
नभमंडल में रजताभ घटा,
कबहूँ गिरिराज समान चले।
गहिके मकरंद-सुवास हवा,
निज को मधुपूर्ण किये निकले।
अलिवृंद प्रसून गहे कर में,
रस-पीवन हेतु सदा मचले।
शरदातप व्याधिविनाशक ते,
वसुधातल की विषबेलि जले।
हिय में भर मोद बहे सरिता,
पय-धार धरे मन लास भरे।
तरुपात हिले मधुराग बजे,
मृदुसौरभ आत्मविभोर करे।
बहु पद्म सरोवर में खिलते,
खगरोर प्रभात मिठास धरे।
अस होत प्रतीति समस्त धरा,
शरदामृत-सिन्धु-विहार करे।
रचनाकार–निशेश अशोक वर्द्धन
उपनाम–निशेश दुबे
ग्राम-देवकुली
डाकघर–देवकुली
थाना -ब्रह्मपुर
जिला–बक्सर
(बिहार)
पिन कोड–802112