कविता

विश्वास के बीज को अंकुरित होने दो

विश्वास के बीज को अंकुरित होने दो
आशाओं के तरु को पल्लवित होने दो-

माना है अभी चंहुं ओर अंधियारा
लगता नहीं है कभी होगा उजियारा
पर, तनिक रुको, भोर को होने दो
सूरज देवता को तनिक सक्रिय होने दो
फिर अंधियारे का वश नहीं चल पाएगा
उजियारा प्रसन्नता से अपने पंख पसारेगा
समय अपनी सीमा से गतिशील होता जाएगा
विश्वास का बीज स्वतः अंकुरित हो जाएगा.

माना आज अमावस की तमस भरी रात है
लगता है चन्द्रमा का कभी अस्तित्व था यह पुरानी बात है
पर, तनिक रुको, दिन को एक पग और खिसकने दो
चन्द्रमा को थोड़ा-सा विश्राम कर क्लांति से मुक्त होने दो
फिर चन्द्रमा प्रेम से अपनी झलक दिखलाएगा
धीर-धीरे बढ़कर पूर्णिमा को चांदी की थाली-सा दिखकर हर्षाएगा
समय अपनी सीमा से गतिशील होता जाएगा
विश्वास का बीज स्वतः अंकुरित हो जाएगा.

माना आज चारों ओर घोर आतंक का साया है
देश-विदेश में, धरती-अंबर में, घर के भीतर-बाहर भय का भूत समाया है
पर, तनिक रुको, पतझड़ जैसी पीड़ाओं को थोड़ा सिमटने दो
बहार जैसी मुस्कानों को मुस्कानों से लिपटने दो
फिर आतंक का दानव किसी कोने में बैठकर आंसूं बहाने को विवश हो जाएगा
आस्था का उपवन पुष्पित और पल्लवित होकर मन को महकाएगा
समय अपनी सीमा से गतिशील होता जाएगा
विश्वास का बीज स्वतः अंकुरित हो जाएगा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244