ग़ज़ल – अनजानी राहों पर
ग़ज़ल – अनजानी राहों पर….
अनजानी राहों पर चलना मुश्किल है ।
गिरकर फिर से रोज सँभलना मुश्किल है ।।
जीत मिले तो तय हो जाते हैं सपने ।
लेकिन उगकर फिर से ढलना मुश्किल है ।
मन तैराक नहीं तो सागर लहरों से ।
यूँ टकराकर अभी उछलना मुश्किल है ।।
कोशिश कर लो जंग फ़तेह हो जाएगी ।
हाथ बँधे हों , राह निकलना मुश्किल है ।।
“निश्छल” कर्मों पर रखना विश्वास सदा ।
मगर फ़रेबी घूँट निगलना मुश्किल है ।।
रचनाकार – नवीन गौतम