भारत की धाक
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव लगभग आने वाले हैं, प्रचार और बयान बाजी चरम पर है। सम्पूर्ण विश्व का आकर्षण भी इस चुनाव में निहित समझें तो गलत नही होगा, क्योंकि विश्व जानता है कि अमेरिका के नेतृत्व परिवर्तन से विश्व के कई निर्णयों में परिवर्तन भी संभव है। जहां वर्तमान राष्ट्रपति ट्रंप अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं, इसके लिए वे हर पक्ष और समूह से संपर्क में है, उसी तरह डेमोक्रेटिक पार्टी के बिडेन भी अपनी दावेदारी मजबूत कर रहे हैं। अभी विस्कंसिन प्रांत की केनशा में हुए एक कार्यक्रम में बिडेन ने तिब्बत के विषय में स्पष्ट मत रखते हुए यह कहा कि यदि वे सत्ता में आए तो तिब्बत में चीनी अधिकारियों द्वारा मानवाधिकार के उल्लंघ पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करेंगे। साथ ही एक नया विशेष समन्वयक नियुक्त करेंगे जो इस बात पर जोर देगा कि चीनी सरकार अमेरिकी राजनयिकों व पत्रकारों तथा अमेरिकी नागरिकों को तिब्बत पहुंचने में कोई समस्या खड़ी ना करें, जिससे कि तिब्बत के स्थानीय नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा हो सके तथा उनकी मूल संस्कृति व परंपराओं पर कोई चीनी प्रतिबंध ना रहे।
यह बयान तब विशेष महत्व रखता है जबकि भारत व चीन सीमाओं पर आमने सामने है, कई स्तर की बातचीत, रक्षामंत्रियों की वार्ता, सैन्य अधिकारियों की वार्ता के बाद भी चीन की मानसिकता में कोई सुधार नही आया। इतिहास के घटनाक्रम को देखें तो समझ मे आएगा कि अतिक्रमण चीन का चरित्र रहा है, आज जो वर्तमान में हम चीन देख रहें है, वह तिब्बत, मंगोलिया, हॉंगकॉंग, आदि कई देश व द्वीपों पर जबरन अतिक्रमण के बाद बना है। ऐसी स्थिति में किसी अमेरिकी प्रतिनिधि द्वारा तिब्बत के विषय में उठाया गया यह व्यापक विचार ही माना जायेगा। इसे भारतीय मूल के मतदाताओं को आकर्षित करने की योजना माना जा सकता है, क्योंकि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में भी भारतीय मूल के हिंदुओं का महत्वपूर्ण योगदान रहता है, लगभग 20 लाख हिंदू मतदाताओं के कारण यह चुनाव भारत की मानसिकता के समर्थन वाले प्रतिनिधि का चुनाव भी हो गया है, जिससे ट्रंप ही नहीं बिडेन भी भारत के समर्थन में तिब्बत की स्वतंत्रता के समर्थन में बयान दे रहे हैं।
विश्व जानता है कि चीन ने अपने आसपास के कई देशों में अतिक्रमण किया और उनके भूभाग पर कब्जा किया तिब्बत भी उसी में से एक है जिस पर बलपूर्वक चीन का कब्जा आज भी विद्यमान है तिब्बत के विद्रोह को चीनी अधिकारी निर्दयता से कुचलते हैं, धर्मगुरु दलाई लामा की हत्या के प्रयास भी कई बार चीनी अधिकारियों द्वारा किए गए, जिसके कारण आज दलाई लामा भारत में आश्रय लेकर सुरक्षित है, तिब्बत की संस्कृति और परंपराओं के रक्षण के लिए विश्व समुदाय को आगे आकर भारत का समर्थन करना चाहिए। क्योंकि एशिया महाद्वीप में केवल भारत ही वह महाशक्ति है जो चीन को सबक सिखा सकती है।
वर्तमान सरकार के प्रयासों से भारत आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर है, अभी डीआरडीओ के भारतीय वैज्ञानिकों ने हाईपरसॉनिक मिसाइल का परीक्षण कर यह सिद्ध भी किया, भारत अब विश्व का चौथा देश बन गया है जो स्वदेश निर्मित हाईपरसोनिक मिसाइलों को विकसित करने की क्षमता रखता है, इससे अगले कुछ वर्ष में भारत की अगली पीढ़ी की हाइपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस 2 के निर्माण में सहयोग मिलेगा। फिलहाल ब्रह्मोस 2 पर काम भारत व रूस की एजेंसी मिलकर कर रही है। यह संकेत है कि भारत अब चीन की चुनोती को संभालने के लिए सक्षम बनने की ओर कदम आगे बढ़ा चुका है।पिछले कई दिनों से सीमा पर चले आ रहे विवादों में भी भारतीय सेना का पराक्रम प्रशंसनीय रहा है। विपरीत परिस्थिति व भौगोलिक चुनोतियों के बाद भी भारतीय सेना ने चीनी सैनिक घुसपैठियों को कई बार पटखनी दी। संपूर्ण देश आज भारतीय सेना के साथ खड़ा है।
ऐसे समय में अमेरिकी चुनावों व भारतीय सीमा, तिब्बत के न्याय से संबंधित समीकरण भारत के पक्ष में ही दिखाई दे रहे है। नेतृत्व जो भी आये अब अमेरिका भारत के सहयोगी के रूप में सदैव खड़ा रहेगा ऐसा अनुमान है। दोनों ही देशों के द्विपक्षीय संबन्ध पिछले वर्षों में प्रगाढ़ हुए है, इसका सीधा श्रेय भारत सरकार के प्रयासों व यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सकारात्मक विदेश नीति को ही जाता है। अब माँ भारती का सम्मान विश्व में बड़ा है, इसके लिए देश के सैनिक, इंजीनयर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, विद्यार्थी, शोधकर्ता, किसान सभी प्रशंसा के पात्र है। क्योंकि जब सभी मिलकर एक साथ आगे बढ़ते है, तभी देश आगे बढ़ता है, और अब भारत ने विश्व मे अपनी धाक जमाना आरंभ कर दिया है।
— मंगलेश सोनी