हे पिता कहां तुम चले गए
हे पिता कहां तुम चले गए,
तुम याद बहुत ही आते हो |
क्या बादल की ओट में छुप कर,
देख हमें भी पाते हो
हे तात तुम्हारी पकड़ के उंगली
सबसे पहले हम खड़े हुए
तेरी साया में पलकर
हम धीरे-धीरे बड़े हुए
जब घर पर तुम रहते थे तो
घर भरा भरा सा रहता था
सबके चेहरे पर हंसी खुशी
घर हरा भरा सा रहता था
खलती है मुझको कमी बहुत
महसूस कभी कर पाते हो?
हे पिता कहां तुम…………
भय भी था तुम्हारा कुछ हम पर
पर प्रेम कहीं उससे ज्यादा
जो वादा करके जाते थे
पूरा कर देते थे वादा
इस दुनिया में है बहुत लोग
पर तुम सा किरदार नहीं होगा
मैंने जो तुमसे पाया है
वो हासिल प्यार नहीं होगा
मैं बातें तुमसे करता हूं
क्या बात कभी सुन पाते हो?
हे पिता कहां तुम………..
एक बार पिता तुम आ जाओ
जी भर कर बातें कर लूं मैं
जो संग हमारे गुजरी थी
वो यादें ताजा कर लूं मैं
अब करूं शिकायत में किससे
तुम सुनो और मैं कह जाऊं
सर पर रख दो तुम हाथ मेरे
मीठे सपनों में खो जाऊं
ये मन की बातें हैं मेरे
क्या जान कभी तुम पाते हो ?
हे पिता कहां तुम चले गए?
तुम याद बहुत ही आते हो
— हेमराज यादव