ज़रूरी वक्त पर कुछ फ़ैसला करने नहीं देता
ज़रूरी वक्त पर कुछ फ़ैसला करने नहीं देता
बशर का ड़र बशर को कुछ नया करने नहीं देता
समझते ख़ूब हैं क्या है सही क्या है ग़लत लेकिन
मियाँ ये लोभ वाजिब तब्सिरा करने नहीं देता
रगों में बह रहा ये ख़ानदानी खूँ कभी हमको
हमारे फ़र्ज़ से कोई दगा करने नहीं देता
धरम का छद्म चहरा हो गया है इस कदर हावी
धरम को बोलने का हौसला करने नहीं देता
दिखा देगा उसे मालूम है उसके गुनाहों को
वो ख़ुद को आईने का सामना करने नहीं देता
तुम्हारा दंभ है ये तुम समझते हो अना जिसको
शुरू ये ही मिलन का सिलसिला करने नहीं देता
हज़ारों बार सोचा है उसे कह दूँ नहीं आए
मगर दिल है कि आने से मना करने नहीं देता
— सतीश बंसल