कविता

बरगद की छांव 

बुलाती है गलियों की  यादें मगर ,
 अब अपनेपन से कोई नहीं बुलाता ।
इमारतें तो बुलंद हैं अब भी लेकिन ,
छत पर सोने को कोई बिस्तर नहीं लगाता ।
बेरौनक नहीं है चौक – चौराहे
पर अब कहां लगता है दोस्तों का  जमावड़ा  ।
मिलते – मिलाते तो कई हैं मगर
हाथ के साथ दिल भी मिले , इतना  कोई नहीं भाता ।
पीपल – बरगद की  छांव  पूर्व सी शीतल
मगर अब इनके नीचे कोई नहीं सुस्ताता  ।
घनी हो रही शहर की  आबादी
लेकिन महज कुशल क्षेम जानने को
अब कोई नहीं पुकारता
— तारकेश कुमार ओझा 

*तारकेश कुमार ओझा

लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं। तारकेश कुमार ओझा, भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 (नया) खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) पिन : 721301 जिला पश्चिम मेदिनीपुर संपर्क : 09434453934 , 9635221463