कविता

कविता

मैंने दीवारों के
कान नहीं देखे
फ़िर भी बातों
को दीवारों
के पार जाते देखा है
शायद दीवार पर
रेंगने वाली
छिपकलियों की
ये हरकत है
वरना उस कमरे में
हुइ बातें
खुली मुलाकातों में
कैसे बदली
या वो शख्स
झूट था
जो बातों को
गोपनीय नहीं
रख सका
नहीं नहीं
विश्वास है मुझे
उस पर
हाँ इस दीवार के
ही छुपे कान है
लो फ़िर बेचारी
दीवार और उस पर
रेंगने वाली
छिपकलियों
पर इल्जाम आया
वो बच निकला
जो छुपी
बातें सरे आम
कर आया
— अंजलि “अंजुमन”

अंजलि शर्मा 'अंजुमन'

मिट्टी का तन मस्ती का मन क्षण भर जीवन मेरा परिचय इन पंक्तियाँ को ख़ुद में सार्थक करती राजस्थान के एक छोटे से शहर ब्यावर की निवासी है अंजलि शर्मा लेखन के क्षेत्र में बचपन से ही सक्रिय रही है व etv राजस्थान में उद्घोषक रह चुकी है 9 सितम्बर 1979 को जन्मी अंजलि शर्मा ने पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है व प्राणीशास्त्र में स्नातकोत्तर किया है वर्तमान में शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय है और प्ले स्कूल का संचालन कर रही हैं.