ग़ज़ल
जश्न सारा का सारा हुआ आपका,
हर हमारा सहारा हुआ आपका।
डूबने को मेरे कितने मझधार हैं,
तैरता हर किनारा हुआ आपका।
चांँद से मांग ली मैंने अपनी दुआ,
टूटता हर सितारा हुआ आपका।
एक मांँ ही तो हिस्से में बस चहिये,
दौलतों का पिटारा हुआ आपका।
याद जो हों बुरी बस हो मेरे लिये,
वक्त अच्छा गुज़ारा, हुआ आपका
आप हो न सके थे किसी के कभी,
एक ‘जय’ ही बेचारा हुआ आपका।
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’