भारतेन्दु हरिश्चंद्र
भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी की, कलम रचे वो छंद।
खुल जायें सब द्वार दिमागी, जो थे पहले बंद।।
हो कोई चौपट राजा या, हो अंग्रेजी राज।
शोषण के विपरीत लड़ा है,उनका सकल समाज।
एक साथ रच डाले नाटक, कविता विपुल निबंध।
मंचों पर अभिनय के द्वारा, तोड़े वर्जित बंध।।
हिंदी माता की गोदी में, हुआ न ऐसा लाल।
पैतीस वर्षों के लघु वय में, माता हुई निहाल।।
कई पत्र के संपादक थे, सजग सहज सुविवेक।
अतुलित प्रतिभा के स्वामी थे,एक और बस एक।
सुंदर सुगठित छैल छबीला, घुघराले थे केश।
सविनय नमन आपको प्रेषित, करता है अवधेश।।
— डॉ अवधेश कुमार अवध