सामाजिक

शाकाहारी खानपान

अगर वर्ण-व्यवस्था को माने, तो मांस-मछली खानेवाले ‘ब्राह्मण’ कैसे कहला सकते हैं, क्योंकि पूजा-पाठ करानेवाले व वेदपाठी व ब्रह्मज्ञानी तो ताउम्र शाकाहारी होते हैं ! अगर आप अपने को सर्वोच्च जाति ‘ब्राह्मण’ समझते हैं, तो मछली व मांस-भक्षण कैसे कर सकते हैं ?
आप जन्म से उपनाम ढो रहे हैं, जनेऊ टांग रहे हैं, किन्तु आप मांस खा रहे हैं, मुर्गे-अंडे खा रहे हैं, मछलियाँ तल-तल कर खा रहे हैं, कबूतर-तीतर व बटेर खा रहे हैं ….. और इन सब को खाकर भी कोई व्यक्ति ‘ब्राह्मण’ कैसे हो सकता है ?
भारत में मुर्गे-अंडे को खाद्य-पदार्थ मुसलमानों ने बनाया, अन्य सजीवों को भी मारकर उन्होंने भक्षण किया, बलि प्रथा तो शुद्र से आये, मछलियाँ भी निषादों यानी शूद्रों की देन है। वैसे वर्ण-व्यवस्था समाज को अस्थिर करते हैं।
नमक भी शूद्रों की देन है, क्योंकि ब्राह्मण तो फलाहारी और शाकाहारी हैं,  वरना जीवों की हत्या को पाप समझनेवाले ब्राह्मण भी मांस भक्षण करें, तो वह ब्राह्मण नहीं, शूद्र है! कन्द-मूल ही ब्राह्मणों का सही आहार है! कैसी रही, आपके पंडिताईन का मंगल-व्रत ! मंगल को नमक नहीं खाएंगे, किन्तु बुद्धवार को मुर्गे और अंडे को ऐसे खाएंगे, जैसे- किसी दबाव में वे व्रत कर रही थी! क्योंकि दिमाग तो हमेशा ही नमक और मांसाहार  के लिए सोच रही थी !

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.