कई तरह की आस्थाएँ
अनंत चतुर्दशी पर सभी आस्थाधारकों को सादर नमन….
मेरे जिगरी यार व आदर्श शिक्षक श्री मुकेश चौरसिया की व्याख्याता धर्मपत्नी श्रीमती रश्मि निशा जी ने अपनी चाची व मेरी माँ को तमिलनाडु से लाकर यह पावन ‘शंख’ को सप्रणाम भेंट की है, माँ ने इस दाम्पत्य युगल को आशीर्वाद कहा है, तो हो जाय ‘शंखनाद’ कि खोजय छअ…. मिललौन…. पुनश्च ‘अनंत’ नमन !
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हमारे यहाँ आज ‘चरचन्ना’ व ‘चौरचंद्र’ है, जो हिन्दू रीति के तहत भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को आदर्श आदर्श पत्नियाँ पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती हैं । आज तृतीया भी है, तो चतुर्थी भी !
देर शाम को इस त्योहार में आस-पास के घरों के छप्पर पर फल फेंके जाने की प्रथा है, किन्तु कालांतर में प्रथाएँ तब्दील हुई, जो कि अब दूसरों के छप्पर पर ईंट, पत्थर, टाली-खपरैल के टुकड़े फेंकते हैं, जिनके घर पर ऐसी विघ्नकारी वस्तु पड़ती है, क्षति घर के महिला-पुरुष मिलकर गाली-गलौज़ करते हैं और तभी पर्व को शुद्ध माना जाता है । जिनके घर पक्के और टिन के चादरों की छत लिए हैं, तो कोई बात नहीं, किन्तु टाली और खपरैल के घरों को काफी क्षति पहुँचती है । प्रत्येक वर्ष मेरी भी क्षति होती है। जब यह पर्व पति की लंबी आयु हेतु है, तो फिर विधवा इसे क्योंकर करती है ? प्रथा जब दु:प्रथा होती जाय, तो इसपर हमें क्या करने चाहिए ? हल की अपेक्षा लिए शुभकामनाएं !
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ऐसे कौन से पर्व-त्योहार हैं, जिनमें पुरुष महिलाओं के लिए व्रत रखती हैं ! पति अपनी प्रिय पत्नी के लिए व्रत रखती हैं, यथा-
“भैया के लिए राखी-दूज,
पति के लिए तीज,
पुत्र के लिए जिउतिया,
वृद्ध पिता के लिए एकादशी !
सब पुरुषवा के लिए परब ही परब,
तोहार लिए सिरफ धारण गरभ !”
अपेक्षित शुभमंगलकामनाएँ !
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