जश्न-ए-मसर्रत
जश्न-ए-मसर्रत औ’ आँखों में नमी है।
तेरी कमी आखिर तेरी ही कमी है।।
मुस्कुराहट है लेकिन ज़रा फीकी।
इतना होना तो लाज़िमी भी है।।
दुनिया की निगाहों से दूर यूँ मिलें।
आकाश से मिलती जैसे ज़मीं है।।
वादे काँच रिश्ते साँसों की डोर भी।
टूटने को ही हर चीज़ बनी है।।
यादों के शहर में हम तेरे आ गए।
न कोई दर्द अब न कोई गमी है।।