पलंग-पलंग स्वाहा
मेरे दादाजी कहा करते थे कि उनके दादाजी ‘पलंग’ पर कभी नहीं सोये, दादाजी के पिताजी यानी मेरे परदादा भी पलंग पर कभी नहीं सोये थे ! मेरे दादा तो पलंग पर सोये ही नहीं ! मेरे पिताजी ‘पलंग’ पर नहीं सो रहे हैं और मैं भी नहीं सो रहा हूँ और मैंने अबतक विवाह नहीं किया है, सो आगे का बता नहीं पाऊंगा !
दरअसल, मेरे 5 पुख्तों के पास पलंग ही नहीं थे यानी अब भी नहीं है !
दादाजी के अनुसार, साग बेचनेवाली एक सब्जीफ़रोशीन के द्वारा साग बेचने के समय ‘पला…सुवा…चुक्का’ कह कर साग बेचने और इस संवाद का भावार्थ मेरे परदादे के पिताजी ने लगाया था– ‘पलंग पर जो सोएगा, वह चुकेगा !’ सम्भवत:, इसी के प्रसंगश: शिक्षाप्रद उद्धरण जारी है !
रियली, हमारा परिवार कथनी और करनी में सामंजस्य रखने का अब भी प्रयास कर रहे हैं !