बाल कविता – असली फूल दिखाओ
माँ गुड़हल का फूल कहाँ है,
लाकर मुझे दिखाओ।
चित्रों वाले फूल दिखाकर,
मुझको न बहलाओ।
हमनें बस गेंदा गुलाब के,
देखे फूल असल के।
बाकी तो पुस्तक में देखे,
झूठे और नकल के।
चंपा और चमेली के कुछ,
फूल कहीं से लाओ।
सदा सुहागन ,बारह मासी,
नाम सुने हैं मैनें।
आक ,धतूरे के, सुनते हैं,
होते फूल सलोने।
किसी गाँव में चलकर इनकी,
सुन्दर छबि दिखाओ।
कहते हैं पीला कनेर भी,
होता लोक लुभावन।
पारिजत और फूल ढाक के,
देखूँ करता है मन।
इनका कहाँ ठिकाना है माँ,
रस्ता तो बतलाओ।