तिलिस्म
एक झूठा तिलिस्म जो भरभरा कर बिखर गया
आ गया सच वो सहसा जो मुँह से निकल गया ।
सपनों का टूटना तो तय है सदियों से जमाने में
हसीन ख्वाब का बिछुड़ना दर्द फिर से दे गया ।
विधि का विधान कौन बदल पाया है संसार मे ,
जीवन का एक और सत्य फिर यही समझा गया ।
लिखा जाएगा इतिहास में एक और झूठा सच ,
नासूर बन कर प्रेम भी न जाने क्यों डस गया ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़