माट सा
भारत रत्न प्रातःस्मरणीय ब्रह्मलीन आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी से बिछुड़े हुए 2 वर्ष से ऊपर हो गए। ब्रह्मलीन दादा जी के लिए ‘बाल’ दान के बाद अब मेरे सिर पर ‘बालों’ के अंकुरण बढ़ रहे हैं। यादों में सदैव रहने के लिए आपको पुनः – पुनश्च प्रणाम !
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एक व्यक्ति ‘माट’सा’ कह शब्दों को बिगाड़ दबंगीयत का परिचय देते हैं।
तो इसपर यही कहूंगा, बचपन में मैं उसे ‘नेटा’ ही कह पाता था, जो कि ‘नाक’ से बहनेवाला धोखे का ‘घी’ है ! चाणक्य जी के नाम प्रसिद्धि लिए है, किन्तु कानून की नजर में भावना की कोई जगह नहीं है!
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आप महँगे गाड़ी खरीदेंगे, उसपर आस्ट्रेलियाई कुत्ते को बिठाएंगे, किन्तु महँगी तेल के नाम पर भारतीय सरकार को कोसेंगे ! मैं तो पैदल यात्री हूँ। ऑटो का किराया पहले ₹20 था, फिर ₹25 हो गया, अब ₹50. पहले मुझे तो सिर्फ ₹5 का अंतर बुझा रहा था, अब दुगुने का बुझा रहा है…., किन्तु कोरोनाकाल में आना-जाना जो कम हो गया है ! सच में, जो तेल पीते हैं, उनके लिए मुश्किलें तो है ! सस्ता के कारण कर्ज लेना पड़ता है और महँगाई से गिड़गिड़ाएंगे नहीं आप और तब देश भी दौड़ेगा !