भारतीय सभ्यता और संस्कृति
क्या मेगास्थनीज़, ह्वेनसांग, मेक्समूलर ! तो कामिल बुल्के, रस्किन बांड आदि तो यहीं के रह गए । अल्लामा इक़बाल ने तो कलमतोड़ प्रशंसा किये । जिसतरह से ताज़महल हमारी आन- बान- शान है, तो लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन, मुहम्मद रफ़ी भी तो देश के लिए आठवाँ आश्चर्य है । वह भारत रत्न डॉ. अब्दुल कलाम ही हो सकते हैं, जो देश को आजीवन ब्रह्मचर्य रह सबसे मजबूत प्रक्षेपास्त्र दिये, तो अपने साथ गीता और वीणा भी रखे रहे।
एक अर्द्धनग्न फकीर ने सत्य -अहिंसा का मंत्र पूरी दुनिया को दिया, जिसे नोबेल सम्मान तो नहीं मिला, किन्तु उनके कार्यों को आगे बढ़ाकर दुनियाभर से 25 से अधिक लोगों को नोबेल सम्मान मिला। इस शख़्स को आइंस्टीन ने सम्मान दिया, तो मार्टिन लूथर किंग ने आत्मसात किया। ओम पुरी और कैलाश सत्यार्थी को सर्वाधिक विदेशी सम्मान मिला, तो अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को हिंदीमय कर दिए।
दिनकर जी ने ‘संस्कृति का चार अध्याय’ दिए, तो राहुल सांकृत्यायन ने विदेशों से बटोरकर ज्ञान -सुधा लाये । …और अनंत रश्मियाँ हैं, जिसने ‘भारत’ की सभ्यता और संस्कृति को दुनिया में सर्वोच्चता प्रदान की । स्वामी विवेकानंद की संस्कृतिलब्धता को कौन तिरोहित कर सकता है ? भगत के एक यही इंकलाब हो सकते थे, सुभाष के ‘जय हिंद’ !