धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मणिपुर का सनामही धर्म

सनामही धर्म दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे प्राचीन धर्म है जिसकी उत्पत्ति मणिपुर में हुई तथा मणिपुर, असम, त्रिपुरा, म्यांमार, बंगलादेश आदि में रहनेवाले मीतै समुदाय इनकी पूजा करता था I मणिपुर में प्राचीनकाल से रहनेवाले आदिवासी समुदाय भी सनामही धर्म में आस्था रखता था, लेकिन ईसाई धर्म अपना लेने के बाद सनामही में इन समुदायों की आस्था नहीं रह गई है I मणिपुर की तंगखुल, कुकी, कबुई, कोम, पुरुम, चोथे इत्यादि जनजातियाँ भी सनामही धर्म के प्रति पूर्ण आस्था रखती थीं, लेकिन ईसाई धर्म को स्वीकार करने के बाद इन जनजातियों की आस्था सनामही के प्रति नहीं है I प्राचीनकाल से प्रत्येक मीतै घर में सनामही की पूजा की जा रही है I सनामही धर्म मीतै समुदाय की परंपरा और रीति – रिवाजों का आधार स्तम्भ है I यह मीतै समाज और उसकी जीवन शैली का अभिन्न अंग है, सनामही के बिना मीतै जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है I सनामही ही मैतेई समाज के सुख – दुःख का कारण, सृष्टि के नियंता व नियंत्रक और समस्त आध्यात्मिक प्रतीकों के केंद्रबिंदु हैं I सनामही सभी देवताओं के राजा हैं, उन्हीं की कृपा से जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति होती है I मीतै समाज का सनामही में अखंड आस्था है I यह धर्म सत्य और न्याय के सिद्धांत पर आधारित है I भगवान सनामही का मानव के अस्तित्व से सीधा जुड़ाव है I मीतै अवधारणा के अनुसार सत्य का अर्थ ज्ञान और सनामही का एहसास है I वास्तव में सनामही ही सत्य हैं, शेष सब मिथ्या है I जो भक्त या साधक सत्यनिष्ठ होते हैं उन्हीं को सनामही का आभास होता है I सनामहीवाद का जीवन दर्शन शाश्वत नैतिक सिद्धांतों पर आधारित है I भगवान सनामही सर्वकल्याणकारी और सर्वहितैषी हैं I मीतै समुदाय के सामाजिक और नैतिक उन्नयन में सनामही की महत्वपूर्ण भूमिका है I यह एक मानवतावादी धर्म है I सनामही के अनुयायी सभी मानव को समान दृष्टि से देखते हैं, इस धर्म में मानव – मानव के बीच कोई विभेद नहीं है I अनेक मीतै छुआछूत में विश्वास करते हैं लेकिन ऐसा करना सनामही धर्म के मानदंड के विरुद्ध है। मीतै समाज के लोगों द्वारा अपने दैनिक जीवन में समाज के प्रति कुछ मानदंडों और कर्तव्यों का पालन किया जाना आवश्यक है। उपयुक्त मंत्रों के साथ लईनिंगथौ सनामही की पूजा करने से लोगों के दुख और संकट दूर हो सकते हैं I सनामही के अनुयायी निम्नलिखित तीन रूपों में उनकी पूजा करते हैं:
1.प्रदेश के ईश्वर के रूप में भगवान लईनिंगथौ सनामही की पूजा I
2.गृहदेवता के रूप में भगवान लईनिंगथौ सनामही की पूजा I
3.पूर्वज के के रूप में भगवान लईनिंगथौ सनामही की पूजा I
अनेक कारणों से सनामही धर्म का पतन हो गया लेकिन मीतै समाज में अन्तःसलिला की भांति यह हमेशा विद्यमान रही है I सनामही एक प्रकार का जड़ात्मवाद अथवा प्रकृति पूजा है I इसमें पूर्वजों और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा की जाती है I सनामही का शाब्दिक अर्थ है ‘सर्वत्र तरल पदार्थ की तरह फैलना’ I तात्पर्य यह कि भगवन सनामही सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हैं I यह मीतै लोगों के सबसे महत्वपूर्ण देवता हैं। सनामहीवाद की अवधारणा, उत्पत्ति, इतिहास और पूजा विधि के संबंध में मतभिन्नता है I व्यापक रूप से ऐसा माना जाता है कि इसमें जल, अग्नि, पर्वत आदि प्राकृतिक शक्तियों की पूजा की जाती है I हिंदू धर्म के आगमन से पहले मणिपुर के मीतै समुदाय सनामही धर्म का अनुसरण करते थे I सनामही का दूसरा नाम ‘अशीबा’ भी था I ऐसी मान्यता है कि ‘अशीबा’ ने आकाश, पृथ्वी और अन्य सभी चेतन – अचेतन वस्तुओं की रचना की I यह एक लोक धर्म है। यह वैष्णववाद के साथ प्रतिस्पर्धा करता है । अनेक लोग और गुट मणिपुरी विरासत पर जोर देने के साथ-साथ सनामहीवाद और संबंधित प्रथाओं को पुनर्जीवित करने की मांग करते रहते हैं । सनामहीवाद और हिंदू धर्म दो अलग – अलग धर्म हैं लेकिन दोनों में अनेक समानताएं भी हैं I सनामहीवाद सिदबा मापु द्वारा सृष्टि की रचना में विश्वास करता है I यह धर्म प्राचीन स्वदेशी जड़ात्मवाद है जिसका संबंध सूर्य पूजा से है I मीतै समुदाय के धार्मिक इतिहास को तीन कालों में विभक्त किया जा सकता है –
1.पूर्व – हिंदुत्व काल
2.हिंदुत्व काल और
3.सनामही धर्म का पुनरुत्थान काल I
1.पूर्व – हिंदुत्व काल – पूर्व – हिंदुत्व काल में मीतै के प्रमुख ईश्वर सनामही थे I एक आख्यान के अनुसार अशीबा ने आकाश, खगोलीय पिंडों और पृथ्वी की रचना की I अंत में उन्होंने मानव की रचना की I उन्होंने अपने पिता ‘याईबिरल सिदाबा’ के परामर्श से सभी रचना की थी I सभी मीतै गृह देवता के रूप में सनामही की पूजा करते थे I ऐसा माना जाता था कि सनामही का निवास घर के दक्षिण – पश्चिम कोने पर होता है, इसलिए दक्षिण – पश्चिम कोने पर उनकी पूजा की जाती थी I चार देवताओं को चारों दिशाओं का अभिभावक समझा जाता था: 1.थनजिंग – दक्षिण – पश्चिम दिशा के स्वामी 2.मरजिंग – उत्तर –पूर्व दिशा के स्वामी 3.वंगबरेल – दक्षिण – पूर्व दिशा के स्वामी और 4.कौब्रू – उत्तर – पश्चिम दिशा के स्वामी I माइबा और माइबी (पुजारी और पुजारिन) द्वारा सभी धार्मिक समारोहों में इन चारों देवताओं का आवाहन किया था और दुष्ट शक्तियों को रोकने के लिए प्रार्थना की जाती थी I मीतै समुदाय द्वारा ‘उमंग लाई’ की पूजा की जाती थी I कुल 365 उमंग लाई थे जिन्हें तीन वर्गों में विभाजित किया गया था: (1) समान उपनाम वाले परिवारों (सगेई) के उमंग लाई (2) गाँव विशेष के उमंग लाई और (3) चारों दिशाओं के उमंग लाई I
2.हिंदुत्व काल – पंद्रहवीं शताब्दी में मणिपुर में दूसरे प्रदेशों से ब्राह्मणों का आगमन हुआ लेकिन उनकी संख्या अत्यल्प थी I मणिपुर में केवल ब्राह्मण पुरुष ही आए थे I मणिपुर के राजा ने उन्हें निम्न वर्ग की स्त्रियों से विवाह करवाया I इन ब्राह्मणों की ऐसी कोई हैसियत नहीं थी कि वे मीतै समाज पर कोई प्रभाव डाल सकें I वे मीतै समाज में घुलमिल गए I चराईरोंगबा (1697 – 1709) मणिपुर के पहले राजा थे जिन्होंने हिंदू धर्म को अपना लिया, लेकिन उन्होंने मीतै समाज में हिंदू धर्म के प्रसार के लिए कोई प्रयास नहीं किया, न ही पारंपरिक सनामही धर्म को नष्ट करने का कोई प्रयत्न किया I गरीब नवाज़ (1709 – 1748) के शासनकाल में बहुत बड़ा बदलाव आया I वर्ष 1717 में सिलहटी ब्राह्मण संत दास गोसाईं ने गरीब नवाज़ को हिंदू धर्म में दीक्षित किया I गरीब नवाज़ ने पारंपरिक सनमाही धर्म को नष्ट करने के लिए अनेक कदम उठाए I उन्होंने वर्ष 1723 ई. में उमंग लाई के सभी मंदिरों को ध्वस्त करा दिया I वर्ष 1723 ई. में उन्होंने क्षत्रिय जाति को अंगीकार कर लिया I संस्कृति, धर्म, इतिहास, राजनीति, भूगोल, साहित्य आदि पर मीतै लिपि में लिखित 120 से अधिक पुस्तकों को अग्नि के हवाले कर दिया गया I मीतै समाज पर हिंदुत्व थोपा गया और जिन्होंने हिंदू धर्म को स्वीकार करने से मना किया उन्हें दण्डित किया गया I मणिपुर के विभिन्न भागों से उमंग लाई को एकत्रित कर उन्हें कब्र में दफना दिया गया I पारंपरिक मीतै गोत्र के स्थान पर सात नए हिंदू गोत्रों की रचना की गई: 1.शांडिल्य 2.कश्यप 3.मधुगल्य 4.गौतम – भरद्वाज 5.अत्रेय- अंगिरा 6.भरद्वाज 7.वशिष्ठ I राजाज्ञा से मीतै भाषा में धार्मिक गीत गाने पर रोक लगा दी गई I गरीब नवाज के पौत्र भाग्यचन्द्र (1759- 1798) के शासनकाल में हिंदू वैष्णव धर्म का गौरव चरम पर था I उन्होंने गौरिया वैष्णव धर्म को अपना लिया था I राजा चन्द्रकीर्ति ने भी हिंदुत्व का विकास जारी रखा I राजा चूराचाँद (1891 – 1941) के शासनकाल में एक प्रसिद्ध विद्वान थे जिनका नाम फुरैलतपम अतोमबापू शर्मा था I उनका मानना था कि मणिपुर आर्यों की प्राचीन मातृभूमि थी I उन्होंने हिंदुत्व की दृष्टि से पारंपरिक धर्म और संस्कृति की व्याख्या की I उन्होंने मीतै समुदाय के आर्यीकरण का औचित्य सिद्ध करने के लिए बंगला, मणिपुरी, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओँ में अनेक आलेख और पुस्तकों की रचना की I उनकी प्रतिभा और विद्वता से प्रभावित होकर डॉ सुनीति कुमार चटर्जी ने उन्हें पूर्वी भारत के अगस्त मुनि की संज्ञा दी है I मणिपुर में राजा गरीब नवाज़ से राजा चूराचाँद तक की अवधि में हिंदू धर्म खूब फूला – फला I
3.सनामही धर्म का पुनरुत्थान काल – राजा चूराचाँद (1891 – 1941) के शासनकाल में सनामही धर्म के पुनरुत्थान का आंदोलन शुरू हुआ I कछार के एक मीतै गाँव से आरंभ पुनरुत्थान आंदोलन के नेता थे नावरम फुल्लो थे जो लाईनिंगल नाओरिया के नाम से प्रसिद्ध थे I नावरम फुल्लो बंगाली वेशभूषा में रहते थे, बंगला बोलते थे और बंगाली हिंदू की तरह पूजा करते थे I जब वे छात्र थे तो उनके बंगाली मित्र कहते थे कि क्या तुम्हारी कोई भाषा और संस्कृति नहीं है ? उन्होंने इस विषय पर गंभीर चिंतन – मनन किया I वे दो बार मणिपुर गए और वहां पारंपरिक धर्म के पवित्र स्थलों का भ्रमण किया I उन्होंने मीतै भाषा, संस्कृति और सनामही धर्म का अध्ययन किया और अनेक पुस्तकें लिखीं I सनामही धर्म हिंदू धर्म का विरोधी नहीं है I यह दुनिया के सभी धर्मों का सम्मान करता है I सनामही धर्म का उद्देश्य निम्नलिखित है:
• हिंदुत्व का त्याग करना I
• मीतै हिंदू विद्वानों द्वारा निरुपित संस्कृतकरण के सभी सिद्धांतों को नकार देना I
• पारंपरिक धर्म, संस्कृति, लिपि, भाषा, साहित्य के पुनरुत्थान के लिए आवश्यक कार्य करना I
• पर्वतीय और मैदानी लोगों के बीच एकता और भाईचारा स्थापित करना I
• मणिपुर और मणिपुर के बाहर रहनेवाले मीतै लोगों में एकता की भावना को मजबूत करना I
• मणिपुर के इतिहास का अनुसन्धान करना I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]