लघुकथा : धर्मनिरपेक्ष
धर्मनिरपेक्ष (कहानी में मुहावरों का प्रयोग)
*नफरत की आग* से सारा शहर *धू-धू करके जल* रहा था और *गिरगिट की तरह रंग बदलने* वाला विपक्ष एक जुट हो सत्तारूढ़ पार्टी को *पानी पी पी कर कोस* रहा था।
आखिरकार सौहार्द की कमान *दो धारी तलवार* वाले आपके नेता जी ने संभाली और *एड़ी चोटी का जोर* लगा कर रैली में आए लोगों को बताया कि कैसे साम्प्रदायिक ताकतें *नफरत की आंधी* फैला, देश का *नाम मिट्टी में मिला* रही हैं और … भाषण के अंत में उन्होंने *अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते हुए* जनता को बस इतना ही कहा, “भाइयो और बहनों, हम धर्मनिरपेक्ष हैं । हमने पिछले ४ वर्षों में ३० मस्जिदें बनवाईं हैं और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि जल्दी ही पूरे देश से *आस्तीन के सांप* साम्प्रदायिक लोगों को *नौ दो ग्यारह* कर देंगे और मेरे राज में सभी मौलवी *दिन दुगनी रात चौगुनी* तरक्की करेंगे ।
और … *कुछ लकीर के फ़कीर* और कुछ *तलवे चाटने वाले* तालियां बजा बजा कर नेता जी के धर्मनिरपेक्ष होने की गवाही दे रहे थे ।
अंजु गुप्ता