शुक्र ग्रह पर वैज्ञानिकों को जीवन के संकेत मिले
हजारों वर्षों से इस दुनिया के उन्नतिशील देशों के वैज्ञानिक, अंतरिक्ष विज्ञानी और खगोलशास्त्री इस सौरमण्डल और इससे परे अनन्त ब्रह्मांड में सूदूर अंतरिक्ष में अरबों प्रकाशवर्ष दूर ग्रहों, तारों, निहारिकाओं में जीवन की तलाश में अपना दिन-रात एक किए हुए हैं। अभी तक अंतरिक्ष वैज्ञानिकों द्वारा इस ब्रह्मांड में ऐसे सैकड़ों तारामंडलों की खोज हो चुकी है, जिनके सूर्य रूपी तारे का चक्कर हमारी पृथ्वी जितनी और जैसे अनेक ग्रह अनवरत चक्कर लगा रहे हैं, ऐसे ग्रहों की खोज हो चुकी है, जिनके धरातल की सभी परिस्थितियाँ जीवन पैदा होने लायक बिल्कुल अनुकूल हैं, जिस प्रकार हमारी शष्य-श्यामला, सांसों के स्पंदन से युक्त हमारी धरती है, परन्तु इन ग्रहों या सितारों की अरबों-खरबों प्रकाशवर्ष की अतंहीन दूरी की वजह से इस धरती के वैज्ञानिक कुछ ज्यादे जानकारी नहीं जुटा पाए हैं, परन्तु हाल ही में हमारे सौरमण्डल के शुक्र नामक ग्रह के लगभग 50 किलोमीटर ऊँचे बादलों में, जिनका तापमान 30 डिग्री सेल्सियस है, वैज्ञानिकों को फास्फीन नामक एक गैस बहुत ही ज्यादे मात्रा में मिली है।
वैज्ञानिकों के अनुसार इससे इस बात की संभावना बहुत ही बढ़ गई है कि सम्भवतया वहाँ के उन बादलों में अतिसूक्ष्म जीव तैर रहे हैं। फास्फीन गैस एक अणु फास्फोरस और तीन अणु हाइड्रोजन से मिलकर बना होता है। पृथ्वी पर इस फास्फीन गैस का सम्बंध जीव जगत से है, क्योंकि हमारी धरती पर इस गैस का उत्पादन और उत्सर्जन पेंगुइन नामक पक्षी के पेट में पाए जानेवाले एक अतिसूक्ष्मजीवी वैक्टीरिया या दलदल जैसी जगहों पर जहाँ पर ऑक्सीजन की मात्रा लगभग नगण्य होती है, वहाँ उपस्थित एक माइक्रोवैक्टीरिया द्वारा बनाई जाती है या उत्सर्जित की जाती है या इस गैस का उत्पादन कारखानों में किया जाता है। ब्रिटेन की एक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेन ग्रीव्स और उनकी टीम के अनुसार चूँकि शुक्र ग्रह के सतह का तापमान इस सौरमंडल के सभी ग्रहों से ज्यादे लगभग 462 डिग्री सेंल्सियस है, इसके वायुमंडल में कार्बनडाई ऑक्साइड की मात्रा 96.5 प्रतिशत तक है और यहाँ का वायुमंडलीय दाब पृथ्वी की तुलना में 92 गुना है, वहाँ के बादलों में 95 प्रतिशत तक सल्फ्यूरिक अम्ल उपस्थित है, इसलिए वहाँ के इस भीषण और कठोरतम् पारिस्थितिकी में शुक्र के धरातल पर किसी जीव के होने और दलदल होने की कल्पना करना ही व्यर्थ है ! नेचर एस्ट्रोनॉमी नामक जर्नल में प्रकाशित अपने विस्तृत शोध में प्रोफेसर जेन ग्रीव्स ने शुक्र ग्रह पर इस अद्भुत जीवन से जुड़े फास्फीन गैस की बहुतायत में उपस्थिति के कारणों पर बहुत ही विस्तृत रूप से प्रकाश डाला है और बताया है कि ‘ये गैस वहाँ किसी प्राकृतिक, नॉन बायोलॉजिकल माध्यम से ही निर्मित हुआ होगा। ‘
शुक्र ग्रह की बादलों में इस फास्फीन गैस की खोज के लिए प्रोफेसर जेन ग्रीव्स और उनकी टीम ने अथक मेहनत किया है। वे लोग हवाई द्वीप के मौना केआ ऑब्जरेटरी में जेम्स क्लार्क मैक्सवेल टेलीस्कोप और चिली में स्थित अटाकामा लार्ज मिलीमीटर ऐरो टेलीस्कोप की मदद से शुक्र ग्रह का सूक्ष्मतापूर्वक निरीक्षण करने के लिए बहुत ही लम्बा अध्ययन किया। इस अध्ययन से उन्हें फास्फीन गैस के स्पेक्ट्रम सिग्नेचर का पता लगा, जिनमें उनको शुक्र ग्रह के 50 किलोमीटर ऊँची बादलों में इस गैस की बहुत बड़ी मात्रा में होने का पता चला। शुक्र ग्रह पर इतनी बड़ी मात्रा में इस फास्फीन गैस के मिलने का मतलब वहाँ जीवन की सम्भावना बढ़ गई है। वहाँ की बादलों में 95 प्रतिशत तक अत्यन्त घातक सल्फ्यूरिक अम्ल है, जो पृथ्वी जैसे ग्रहों पर विकसित कोशिकाओं से बने जीवों के लिए प्राणान्तक तक घातक है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर वहाँ सूक्ष्म जीव होंगे तो वे स्वयं को सल्फ्यूरिक अम्ल जैसे घातक अम्ल से बचने के लिए किसी न किसी तरह का अभेद्य कवच जरूर बना लिए होंगे। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रोफेसर विलियम बैंस के अनुसार ‘शुक्र ग्रह के वैक्टीरिया ऐसे होंगे, जो अपने शरीर के ऊपर टेफ्लान (एक ऐसा यौगिक जो अत्यधिक सांद्रित अम्ल में भी और बहुत अधिक तापमान में भी नष्ट नहीं है )से भी मजबूत कवच बनाकर उसमें अपने को बिल्कुल सुरक्षित और सील कर लिए होंगे, लेकिन इस स्थिति में वे अपना पोषण व श्वसन जैसी जैविक क्रियाएं कैसे करते होंगे ?यह बहुत बड़ा अनुत्तरित प्रश्न है। ‘ज्ञातव्य है कि तत्कालीन सोवियत संघ ने 1985 में शुक्र ग्रह पर अपना बेगा बैलून भेजा था, जिसे सल्फ्यूरिक अम्ल से बचाने के लिए उस पर टेफ्लान की परत चढ़ाई गई थी, लेकिन वह भी शुक्र की धरातल पर उतरने के कुछ समय बाद ही निष्क्रिय हो गया था !
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने सम्भावना व्यक्त की है कि ‘वे 2030 तक शुक्र ग्रह पर एक फ्लैग-मिशन भेजने की एक योजना पर काम कर रहे हैं, जिसमें एक इंस्ट्रूमेंटल बैलून भेजने पर भी विचार किया जा रहा है, जो वहाँ के बूँदों को जमा करके, वहाँ अपने साथ लाए गए एक अत्यधिक शक्तिशाली माइक्रोस्कोप से वहाँ के सूक्ष्म जीवों का अध्ययन कर सकेगा। ‘ वैज्ञानिकों के अनुसार ‘अगर शुक्र ग्रह के बहुत ऊँचाई वाले बादलों पर जीवन मिलता है, तो हमें बहुत सी चीजों को समझने में मदद मिलेगी, क्योंकि इसका मतलब होगा कि हमारी आकाशगंगा के सूदूरवर्ती ग्रहों में जीवन होने का यह मतलब ये नहीं कि वहाँ का पर्यावरण व परिस्थितियाँ ठीक पृथ्वी से मिलतीजुलती यथा ठंडी, ऑक्सीजन युक्त ही हों, संभवतया वह शुक्र ग्रह के वातावरण जैसे सल्फ्यूरिक अम्लयुक्त, बेहद गर्म व बगैर ऑक्सीजन वाली भी हो सकती है ! इसका मतलब हमारे ब्रह्मांड में पराग्रही, अत्यंत बुद्धिमान जीव ‘एलियंस ‘की कल्पना महज काल्पनिक नहीं, अपितु वह वास्तविक और यथार्थ भी संभाव्य है। ‘उक्त अन्वेषण से एक बात तो अवश्य ही सिद्ध होती है कि ‘ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं हैं और भी ग्रह हमारे जैसे जीवन के स्पंदन से युक्त हैं। ‘
— निर्मल कुमार शर्मा