अब है संसार को रोना…….
अस्त्र शस्त्र सब धरे रह गये, कुछ भी काम न आया
परग्रहों पर जाने वाला, घर से निकल न पाया
हिरणाकष्यप अभिमानी भी, खुद को अमर मानता था
कोई नरसिंह भी आयेगा, ऐसा नही वो जानता था
प्रहलाद की उसने एक न मानी, अब अन्त समझ में आया
अस्त्र शस्त्र सब धरे रह……..
कुदरत के हर पौधे की, तुमने तोड़ी डाली है
मंजर देख के लगता है, धरती वीरों से खाली है
भक्ति भाव की दरिया को, तूने खूब बहाया है
द्वेश से दूषित हृदय है तेरा, कपट ही तूने दिखाया है
याद करो उस नील कण्ठ को, हलाहल जो पीने आया।
अस्त्र शस्त्र सब धरे रह………
मानव के आने से पहले, आदम खोरों को हटा दिया
ये दुनियाँ सारी तेरी है, कुदरत नें तुझे बता दिया
क्या सोंच के तुझको बनाया था, खरे नही तुम उतरे हो
जिस डाली पर बैठे हो, हर वक्त उसी को कुतरे हो
दया नही की जीवों पर, हर जीव जन्तु को खाया
अस्त्र शस्त्र सब धरे रह………..
चालक बहुत तू बनता है, चालांकी अपनी देखो तुम
हर सबक तूने गलत लिखा, परिणाम आज का देखो तुम
हर तरफ मचा करूणक्रदंन, अब है संसार को रोना
कुदरत का इसे कहर ही समझो, बहाना बना कोरोना।
गतिविधियाँ थम गयीं हैं सारी, सबको दुबुकता पाया।
अस्त्र शस्त्र सब धरे रह…………..
इस धरा पे जितने तूफां आये, हला झुला के चले गये
छोटे से कीडे़ के आगे, बेबस कदम नही चले गये
लील रहा दुनियाँ सारी, पेट अभी भी भरा नही
जंगी जहाजों से भी देखो, अब तक है ये डरा नही
क्या सोंच के चीन से निकला है, कुछ (राज) समझ न आया
अस्त्र शस्त्र सब धरे रह………….
-राज कुमार तिवारी (राज)